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________________ २६८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [पयडिविहत्ती २ तेवीस-बावीसविहरियाणं मंगेहि विणा तेरसविहत्तियस्स भंगा चेव आगच्छति । संपहि तेवीस-बावीस-तेरसविहतियसव्वभंगाणमागमणमिच्छामो त्ति पुव्वुत्तणवमंगेसु तीहि स्वेहि गुणिदेसु तेवीस-बावीस-तेरसविहत्तियाणं एग-बहुवयणाणि अस्सिदण एग-दु-तिसंजोगसव्वभंगा सत्तावीस २७ । एवं सेसवारसदिविहत्तियाणं पि एगबहुवयणमस्सिदण एग-दुसंजोगादिभंगा जाणिदृणुप्पाएदव्वा । एवमुप्पाइदे सव्वमंगसमासो रातओ होदि ५६०४६ । एवं भयणिजपदाणं तिगुणे दव्वस्स अण्णोण्णगुणणाए च कारणं वुत्तं । विभक्तिस्थानोंके नौ भंगोंको दूना कर देनेपर तेईस और बाईस विभक्तिस्थानोंके भंगोंके बिना तेरह विभक्तिस्थानके सभी भंग आते हैं। अब यदि तेईस, बाईस और तेरह विभक्तिस्थानोंके समी भगोंके लानेकी इच्छा हो तो पूर्वोक्त नौ भङ्गोंको तीनसे गुणित करनेपर एकवचन और बहुवचनका आश्रय लेकर तेईस, बाईस और तेरह विभक्तिस्थानोंके एक संयोगी, द्विसंयोगी और तीन संयोगी सब भङ्ग सत्ताईस होते हैं। इसी प्रकार एकवचन और बहु बचनकी अपेक्षा शेष बारह विभक्तिस्थानोंके भी एकसंयोगी और द्विसंयोगी आदि भङ्ग उत्पन्न कर लेना चाहिये । इसप्रकार उत्पन्न हुए सब भङ्गोंका जोड़ ५६०४६ होता है। इस प्रकार भजनीय पदोंको विरलित करके तिगुना क्यों करना चाहिये और तिगुणित द्रव्यको परस्परमें गुणित क्यों करना चाहिये इसका कारण कहा । उदाहरण १ ध्रुवभङ्ग २ तेईस विभक्तिस्थानके भङ्ग ३ ध्रुषभङ्ग सहित तेईस विभक्तिस्थानके भङ्ग ३४२=६ बाईस विभक्तिस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग ३४३= ध्रुवभंग सहित २३ व २२ स्थानके सब भंग २४२=१८ तेरह विभक्तिस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग २४३=२७ ध्रुवभंग सहित २३,२२व१३ विभक्तिस्थानोंके सब भंग २७४२=५४ बारह विभक्तिस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग २७४३८१ ध्रुवभंगसहित २३,२२,१३व१२वि० स्थानके सबभंग -१४२=१६२ ग्यारह विभक्तिस्थानके प्रत्येक व संयोगी सब भंग ८१४३ २४३ ध्रुवभंग सहित २३ से ११ तकके स्थानोंके सब भंग २४३४२४८६ पांच विभक्तिस्थानके प्रत्येक व संयोगी भंग २४३४३=७२६ ध्रुवभंग सहित २३ से ५ तकके स्थानोंके सब भंग ७२६४२-१४५८ चार विभक्तिस्थानके प्रत्येक व संयोगी भंग Jain Education International For Private &Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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