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________________ २५५ गा० ३३) पडिहाणपिहात्तीए अंतर ___ ३१५. कुदो ? अणादियमिच्छादिही अद्धपोग्गलपरियडस्स आदिसमए सम्म घेतूण जहाकमेण सत्तावीसविहत्तिओ जादो । तदो सम्मामिच्छत्तमुन्वेल्लिदणंतरिदो। उवठ्ठपोग्गलपरियहम्मि सव्वजहण्णपालदोवमस्स असंखेन्जादिभागमेत्तकाले सेसे उवसमसम्म घेत्तूण अंतोमुहुत्तमच्छिय मिच्छसं गंतूण तदो सम्मत्तुव्वेलणकाले सव्वजहण्णंतोमुहुत्तावसेसे सम्मत्ताहिमुहो होदूण अंतरं करिय मिच्छत्तपढमष्टिदिदुचरिमसमए सम्मत्तमुव्वेल्लिय चरिमसमए सत्तावीसविहत्तिओ होदूण कमेण जो सिद्धो जादो तस्स पढमिल्लेण पलिदो० असंखे०भागमेत्तकालेण पच्छिमेण अंतोमुहुत्तकालेण च ऊण-अद्धपोग्गलपरियहमेत्तुक्कस्संत्तरकालुवलंभादो। . * अट्ठावीसविहत्तियस्स जहण्णेण एगसमओ। $ ३१६. कुदो ? अहावीसविहात्तओ मिच्छाइट्टी सम्मत्तुव्वेलणकाले अंतोमुहुत्तावसेसे उवसमसम्मत्ताहिमुहो होदूण अंतरं करिय मिच्छत्तपढमहिदिदुचरिमसमए सम्मत्तमुन्वे १३१५.शंका-सत्ताईस प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट अन्तर उपार्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण कैसे है ? ___समाधाम-जब संसारमें रहनेका काल अर्धपुद्गलपरिवर्तनमात्र शेष रह जाय तब उसके प्रथम समयमें जो अनादि मिथ्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वको ग्रहण करके यथाक्रमसे सत्ताईस प्रकृतिकस्थानवाला हुआ। तदनन्तर सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करके सत्ताईस प्रकृतिक स्थानके अन्तरको प्राप्त हुआ। पुन:जब उपापुद्गल परिवर्तनकालमें सबसे जघन्य पल्योपमका असंख्यातवां भागप्रमाण काल शेष रहा तब उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करके और अन्तर्मुहूर्तकाल तक उसके साथ रह कर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। तदनन्तर सम्यक्प्रकृतिके उद्वेलनाकाल में जब सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्न काल शेष रहा तब सम्यक्त्वके अभिमुख होकर और अन्तरकरण करके मिथ्यात्वकी प्रथमस्थितिके उपान्त्य समयमें सम्यक्प्रकृतिकी उद्वेलना · करके मिध्यात्वकी प्रथमस्थितिके अन्तिम समयमें सत्ताईस प्रकृतिवाला होकर क्रमसे जो सिद्ध हो गया, उसके सत्ताईस प्रकृतिकस्थानका, सत्ताईस प्रकृतिकस्थानके अन्तरके पहले जो पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण उद्वेलनाकाल कह आये हैं और अन्तरके वाद जो सिद्ध होने तकका अन्तर्मुहूर्तकाल कह आये हैं इन दोनोंसे कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल पाया जाता है। . * अहाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। ६३१६.शंका-अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्य अन्तरकाल एक समय कैसे है. समाधान-अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानकी सचावाला जो मिथ्यादृष्टि जीव सम्यक्प्रकृतिके उद्वेलनाकालमें अन्तर्मुहूर्त शेष रह जानेपर उपशमसम्यक्त्वके अभिमुख होकर और अन्तरकरण करके मिथ्यात्वकी प्रथम स्थिति के उपान्त्य समयमें सम्यकप्रकृतिकी उद्वेलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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