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________________ २६४ arraaree hareपाहुडे [ पडती २ ९२६६. देवेसु अट्ठावीस विह० जह० एगसमओ । चडवीसविह० जह० अंतोनुडुतं । उक्क० दोण्हंपि तेत्तीसं सागरोवमाणि । सत्तावीसविह • ओघभंगो। छब्वी सविह० के० १ जह० एगसमओ । उक्क • एक्कत्तीस सागरोवमाणि । वावीसविह० जह० एगसमओ । उक्क० अंतोमुडुत्तं । एकवीसविह० केव० ९ जह० पालदोवमं सादिरेयं, उक्क० तेतीसं सागरोवमाणि । भवण० वाण० जोइसि० अट्ठावीस - छब्बीसविह० केव० ? जह एगसमओ, उक्क ० सहिदी | सत्तावीस० ओघभंगो । चउवीसविह० के० ? जह० अंत, उक्क० सगहिदी देखणा | सोहम्मादि जाव उवरिमगेवजदेवाण मोघभंगो । क्तिस्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त ही होता है, क्योंकि जो जीव स्त्रीवेद के उदयके साथ क्षपणीपर चढ़ता है उसके नपुंसक वेद के क्षय हो जानेके पश्चात् अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा ही स्त्रीवेदका क्षय होता है । इसी प्रकार मनुष्याणियोंके २१ विभक्तिस्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण ही होता है । इनके २१ विभक्तिस्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त क्यों होता है, यह तो स्पष्ट ही है पर उत्कृष्टकाल जो कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण बतलाया उसका कारण यह है कि सम्यग्दृष्टि जीव मर कर मनुष्यणियों में उत्पन्न नहीं होता अतः एक भवकी अपेक्षा ही इनका उत्कृष्टकाल प्राप्त होता है । किन्तु क्षायिक सम्यक्त्वकी प्राप्ति कर्मभूमिज मनुष्यके ही होती है और कर्मभूमिज मनुष्य की उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि वर्ष प्रमाण होती है । साथ ही यह भी नियम है कि कर्मभूमिज मनुष्य के आठ वर्षके पहले सम्यक्त्व उत्पन्न करनेकी योग्यता नहीं होती, अतः एक पूर्वकोटिकी आयुवाले जिस मनुष्यणीने आठ वर्षके उपरान्त बेदक सम्यक्त्वपूर्वक क्षायिक सम्यक्त्वको उत्पन्न किया है उसके २१ विभक्तिस्थानका उत्कृष्टकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण देखा जाता है । २६. देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य काल एक समय है और चौबीस प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है। तथा दोंनों स्थानोंका उत्कृष्टकाल तेतीस सागर है । सत्ताईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान है । छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल इकतीस सामर है । बाईस प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इक्कीस प्रकृतिक स्थानका कितना काल है जघन्य काल साधिक पल्य और उत्कृष्टकाल तेतीस सागर है । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोमें अट्ठाईस और छब्बीस प्रकृतिकस्थानका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है । सत्ताईस प्रकृतिक स्थानका काल ओघ के समान है । चौबीस प्रकृतिक स्थानका कितना कोल है ? जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल देशोन अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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