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________________ गा० २२ ] काल अन्त मुहूर्त " 1:3 دو " "" ܕܕ क्रोध के उदयसे चारों कषायों का अश्वकर्णकरण क्रोध, मान, माया व लोभकी १२ कृष्टिकरण क्रोध तीन कृष्टि क्षय ( नव कबन्ध के बिना) मान तीन कृष्टि क्षय ( नवबन्धके बिना ) Jain Education International पावती कालो मानके उदयसे क्रोधक्षय | (नवबन्धके बिना) मान, माया व लोभका अश्वकर्ण करण मायाके उदय से लोभके उदयसे क्रोधक्षय क्रोधक्षय (नवकबन्धके बिना) ( नवकबन्ध के बिना) मानक्षय मानक्षय | ( नवकबन्ध के बिना) | ( नवकबन्ध के बिना) मान, माया व लोभकी माया और लोभका ९ कृष्टि करण अश्वकर्ण करण मान तीन कृष्टि क्षय | ( नवकबन्धके बिना) माया व लोभकी ६ कृष्टि करण २४१ | माया तीन कृष्टि क्षय ( नव कबन्ध के बिना) माया तीन कृष्टि क्षय (नवकबन्धके बिना) लोभ तीन कृष्टि क्षय लोभ तीन कृष्टि क्षय लोभ तीन कृष्टि क्षय लोभ तीन कृष्टि क्षय श्रीवेद के उदयसे जो जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ता है वह छह नोकषाय और पुरुषवेदका एक साथ क्षय कर देता है, अतः स्त्रीवेदके उदयके साथ क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके अश्वकर्णकरणके कालमें या स्पर्धकरूपसे क्रोधक्षयके कालमें पुरुषवेदके नवकबन्ध क्षयको प्राप्त न होकर पहले ही निर्जरित होजाते हैं । पर जो जीव पुरुषवेद या नपुंसक वेदके उदय के साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ता है उसके अश्वकर्णकरणके कालमें या क्रोधक्षयके कालमें दो समय कम दो आवलि काल तक पुरुषवेदके नवकबन्ध रहते हैं । कोष्ठक के प्रथम नम्बरके चारों खानों में इतनी विशेषता है जो उनमें नहीं दिखाई गई है। अतः इस विशेषताको ध्यान में रखना चाहिये; क्योंकि इतनी विशेषताको ध्यान में रखकर कोष्ठक के ऊपरसे उक्त चारों स्थानोंके जघन्य और उत्कृष्ट कालके ले आनेमें सरलता होती है। अब आगे उन्हीं कालोंको कोष्ठकके ऊपरसे समझानेका प्रयत्न किया जाता है- जो जीव क्रोध, मान या मायाके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ेगा उसके एक विभक्ति स्थानका जघन्य काल दो समय न्यून दो आवलीकम अन्तर्मुहूर्त होगा । यह बात छठे नम्बरके प्रारम्भके तीन खानोंसे भली भांत ज्ञात हो जाती है । अन्तर्मुहूर्त कालमें से दो समय कम दो आवलिकाल कम करनेका कारण यह है कि लोभकी तीन कृष्टियोंके क्षय काल में दो समय कम दो आवलिकाल तक मायाके नवकबन्ध पाये जाते हैं । इसीप्रकार इतना काल कम करने का कारण अन्यत्र भी जानना । तथा जो जीव लोभके उदय से क्षपकश्रेणीपर चढ़ेगा उसके एक विभक्तिस्थानका उत्कृष्टकाल प्राप्त होगा । यह बात लोभके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए ३१ माया तीन कृष्टि क्षय (नवकबन्ध के बिना) For Private & Personal Use Only मायाक्षय ( नवकबन्धके बिना) लोभका अश्वकर्ण करण लोभ ३ कृष्टि करण www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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