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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिकिहत्ती २ माणस्स जो कालो सो एगबिहत्तियस्स जहण्णकालो होदि । ___६२६६. उकस्सकालो वि अंतोमुहुत्तं । तं जहा-पुरिसवेद-लोभसंजलणाणं उदएण जो खवगसेदि चडिदो सो कोधसंजलणोदएण खवगसेटिं चडिदस्स अस्सकण्णकरणकाले कोधसंजलणं फद्दयसरूवेण खवेदि । कोधसंजलणोदएण खवगसेटिं चडिदस्स किट्टीकरणकाले माणसंजलणं फद्दयसरूवेण खवेदि । कोधसंजलणोदएण खवगसेटिं चडिदो जेण कालेण कोधसंजलणतिण्णिकिडीओ वेदयमाणो खवेदि तम्हि व हाणे तेणेव कालेण एसो मायासंजलणं फद्दयसरूवेण खवेदि । कोधोदएण चडिदो जम्मि माणकिटीओ खवेदि तम्हि लोहोदएण चडिदो एगविहत्तिओ होदूण अस्सकपणकरणं करेदि । कोधोदएण खवगसेढिं चडिदो जम्मि मायाए तिषिण किहीओ खवेदि तम्मि उद्देसे तेणेव कालेण लोभस्स तिणि किट्टीओ करेदि। कोधोदएण जम्मि काले लोभपढमविदियबादरकिडीओ सुहुमकिट्टि च वेदेदि लोहोदएण खवगसेटिं चडिदो लोभकिडीओ तम्हि चेव उद्देसे तेणेव कालेण खवेदि । संपहि कोहोदएण जघन्य काल होता है। ६२६१.तथा एक प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्ट कालभी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। वह इसप्रकार है-पुरुषवेद और लोभसंज्वलनके उदयसे जो क्षपकश्रेणीपर चढ़ता है वह जीव, क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवका जो अश्वकर्णकरणका काल है, उस कालमें क्रोधसंज्वलनका स्पर्धकरूपसे क्षय करता है । तथा क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके क्रोधसंज्वनके कृष्टिकरणका जो काल है पुरुषवेद और लोभसंचलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव उस कालमें मानसंज्वलनका स्पर्धकरूपसे क्षय करता है। तथा क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव जिस काल में क्रोधसंज्वलनकी तीन कृष्टियोंका अनुभव करता हुआ उनका क्षय करता है, पुरुषवेद और लोभसंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव उसी स्थानमें और कालमें मायासंज्वलनका स्पर्धकरूपसे क्षय करता है । क्रोधसंज्वलनके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव जिस समय मानकी तीन कृष्टियोंका क्षय करता है लोभके उदयसे चढ़ा हुआ जीव उस समय एक प्रकृतिकी सत्तावाला होकर अश्वकर्ण क्रियाको करता है। क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव जिस समय मायाकी तीन कृष्टियोंका क्षय करता है लोभके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव उसी स्थानमें और उसी कालके द्वारा लोभकी तीन कृष्टियां करता है। क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव जिस समय लोभकी पहली और दूसरी बादर कृष्टियोंका तथा सूक्ष्मकृष्टिका वेदन करता है लोभके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव उसी स्थानमें और उसी कालके द्वारा लोभकी तीन कृष्टि. योंका क्षय करता है। इसप्रकार क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके दो समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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