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________________ गा० २२ ] पयडिट्ठाणविहत्तीए सामित्तणिदेसो २२५ ६२५४. ओरालियमिस्स० अठ्ठावीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स तिरिक्ख-मणुस्समिच्छाइहिस्स मणुस्सस्स सम्मादिहिस्स वा । सत्तावीस-छव्वीसविहत्ती कस्स ? अण्ण दुगइमिच्छाइहिस्स। चउवीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स[मगुस्स] सम्माइटिस्स । वावीसविहत्ती कस्स ? अण्णदरस्स दुगइअक्खीणदसणमोहस्स । एकवीसविहची कस्स ? दुगइसम्माइटिस्स। ६२५५. वेउब्विय. अहावीसविह० कस्स ? देव-णेरइयमिच्छा० सम्मादिहिस्स ६२५४. औदारिक मिश्र काययोगमें अट्ठाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? किसी भी मिथ्यादृष्टि तिर्यंच या मनुष्यके तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्यके होता है। सत्ताईस और छब्बीस विभक्ति स्थान किसके होते हैं ? तियच और मनुष्य इन दोनों गतियोंके किसी भी मिथ्यादृष्टि जीवके होते हैं। चौबीस विभक्ति स्थान किसके होता है ? किसी भी सम्यग्दृष्टि मनुष्य के होता है। बाईस विभक्ति स्थान किसके होता है ? जिसने दर्शनमोहनीयका क्षय नहीं किया है ऐसे उक्त दोनों गतियोंके किसी भी कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि जीवके होता है । इक्कीस विभक्ति स्थान किसके होता है ? उक्त दोनों गतियोंके सम्यग्दृष्टि जीवके होता है। विशेषार्थ-औदारिक मिश्र काययोग तिथंच और मनुष्योंके अपर्याप्त अवस्थामें होता है । अब देखना यह है कि औदारिक मिश्र काय योग अवस्थाके रहते हुए इन दो गतियों में से किस गतिमें कौनसा गुणस्थान रहते हुए कौन कौन सत्त्वस्थान होते है। यह तो सुनिश्चित है कि उपशम सम्यग्दृष्टि जीव मर कर मनुष्य और तियचोंमें नहीं उत्पन्न होता । इसलिये उपशम सम्यकत्वकी अपेक्षा २८ प्रकृतिक सत्वस्थान इन दोनों गतियोंकी अपर्याप्त अवस्थामें नहीं पाया जा सकता। कृतकृत्यवेदकके सिवा वेदक सम्यग्दृष्टि जीव मर कर तिर्यचोंमें नहीं उत्पन्न होता, हां मनुष्यों में अवश्य उत्पन्न हो सकता है, इसी से यहाँ औदारिक मिश्रकाययोगके रहते हुए मिथ्यादृष्टि मनुष्य और तिर्यचको तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्यको २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थानका स्वामी बतलाया है। २७ और २६ प्रकृतिक सत्त्वस्थान दोनों गतियोंके मिथ्यादृष्टिके होता है। यह स्पष्ट ही है। २४ प्रकृतिक सत्त्वस्थान मनुष्य सम्यग्दृष्टिके होनेका कारण यह है कि ऐसा वेदक सम्यग्दृष्टि देव और नारकी मनुष्योंमें ही उत्पन्न होता है, तियचोंमें नहीं। शेष रहे २२ और २१ ये दो सत्त्वस्थान, सो ये दोनों गतियोंमें औदारिक मिश्र अवस्थाके रहते हुए उत्तम भोग भूमि अवस्थाकी अपेक्षा सम्भव हैं। इस प्रकार औदारिक मिश्र काययोगमें २८,२७, २६, २४, २२ और २१ ये छह सत्त्व स्थान किस प्रकार सम्भव हैं इसके कारणका विचार किया । ६२५५. वैक्रियिककाययोगमें अट्ठाईस विभक्तिस्थान किसके होता है ? मिध्यादृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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