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________________ २०२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे । पयडिविहत्ती २ ६२१०. एदे पण्णारस हाणवियप्पा ओघेण होति । एदेसि हाणाणं पदेसपरूवणडं जइवसहाइरियो उत्तरसुत्तं भणदि ।। एकिस्से विहत्तियो को होदि ? लोहसंजलणोप १२११. जस्स लोहसंजलणमेकं चेव संतकम्मं सो लोहसंजलणो एकिम्से विहत्तिओ। दोण्हं विहत्तिओ को होदि ? लोहो माया च ।। ६२१२.लोह-मायासंजलणाणि दो चेव जस्स संतकम्ममत्थि सो दोण्हं विहत्तिओ। तिण्हं विहत्ती लोहसंजलण-माणसंजलण-मायासंजलणाओ. १२१३. लोभ-माया-माणसंजलणाओ तिण्णि चेव जदा होंति तदा तिण्हं पयडिहाण होदि। चउण्हं विहत्ती चत्तारि संजलणाओ। *१२१४. चत्तारि संजलणाओ सुद्धाओ जत्थ संतकम्मं होंति तत्थ चदुण्हं विहत्ती णाम हाणं होदि । ६२१०. ये पन्द्रहों सत्त्वस्थानविकल्प ओघकी अपेक्षा होते हैं । अब इन सत्त्वस्थानोंकी प्रकृतियोंका कथन करने के लिये यतिवृषभ आचार्य आगेका सूत्र कहते हैं *एक प्रकृतिकी विभक्तिवाला कौन है ? लोभसंज्वलनवाला जीव एक प्रकृतिकी विभक्तिवाला होता है। .. ६२११.जिस जीवके एक लोभसंज्वलनकी ही सत्ता होती है वह लोभसंज्वलनका धारक जीव एक प्रकृतिकी विभक्तिवाला होता है। *दो प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला कौन है ? संज्वलन लोभ और मायाकी सत्तावाला जीव दो प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला होता है। ६२१२. जिस जीवके लोभसंज्वलन और मायासंज्वलन केवल ये दो कर्म सत्तामें होते हैं वह दो प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला होता है । ___ *जिसके लोभसंज्वलन, मायासंज्वलन और मानसंज्वलन ये तीन कर्म पाये जाते हैं वह तीन प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला होता है। ६२१३. जिस समय जीवके केवल लोभ, माया और मानसंज्वलन ये तीन कर्म पाये जाते हैं उस समय उसके तीनप्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । * जिसके चारों संज्वलनकषाएँ पाई जाती हैं वह चार प्रकृतियोंकी विभक्तिवाला होता है। ६२१४. जहां पर केवल लोभसंज्वलन आदि चार कर्मोंकी सत्ता होती हैं वहां चार प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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