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________________ १६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ मिच्छत्त० विह० विसे० । अटक० विह० विसे । णवूस० विह० विसे० । इत्थि० विह विसे । छण्णोक० विह० विसे० । पुरिस० विह. विसे० । कोधसंजल विह विसे० । माणसंजल विह. विसे । मायासंजल विह. विसेसा। लोभसंजल विह. विसे । एवमोरालिय०-अचक्खु०-भवसिद्धि०-आहारएत्ति वत्तव्वं । ६२००.ओरालियमिस्स० सव्वत्थोवा बारसक०-णवणोक० अविह ०। मिच्छत्त. अविह० संखेजगुणा । अणंताणुचउक्क० अविह संखेज्जगुणा । सम्मत्त विह असंखेज्जगुणा। सम्मामि० विह० विसे० । तस्सेव अविह० अणंतगुणा । सम्मत्त० अवि० विसे० । अणंताणु० चउक्क० विह० विसे । मिच्छत्त० विह. विसे । बारसक०-णवणोक० विह विसे० । एवं कम्मइय० । णवरि, मिच्छत्त-अविहत्तियाणमुवरि अणंताणु०चउक्क० अविह० असंखेज्जगुणा । आहार-आहारमिस्स० सव्वत्थोवा मिच्छत्त-सम्मत्तन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे आठ कषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे नपुंसकवेदकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे स्त्रीवेदकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे छह नोकषायकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे पुरुषवेदकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे क्रोधसंज्वलनकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मानसंज्वलनकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे मायासंज्वलनकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे लोभसंज्वलनकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इसीप्रकार औदारिककाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके कहना चाहिये। २००. औदारिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विसक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार कार्मणकाययोगी जीवोंके जानना चाहिपे। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी जीवोंमें मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीवोंसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अनन्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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