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________________ गो०२२ उत्तरपयडिविहत्तीए खेत्ताणुगमो के० ? असंखेज्जा । अवि० के० ? संखेज्जा । अणंताणु० चउक्क० विह० अविह० के० ? असंखेज्जा । सम्मत्त-बारसक०-णवणोकसाय० विह० के० १ असंखेज्जा । उवसमसम्माइ० अणंताणु०चउक्क० विह० के० १ असंखेज्जा । अविह० के० १ असंखेज्जा। सेसपय० विह० असंखेज्जा । एवं सम्मामि०। सासण. अहाबीसंपयडीणं विह. के. ? असंखेज्जा। एवं परिमाणं समत्तं । - ११७५.खेत्ताणुगमेण दुविहो णिदेसो, ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण छन्वीसंपयडीणं विह० केवडिखेत्ते ? सव्वलोगे। अविह० केव० खेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं विह० के० खेत्ते ? लोगस्स असंखे भागे। अविह० सव्वलोगे । एवं तिरिक्ख०-सव्वएइंदिय०जीवों में मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात हैं। अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्ति और अविभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात हैं। सम्यकप्रकृति, बारह कषाय और नौ नोकपायोंकी विभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात हैं। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात हैं। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात हैं। तथा शेष प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सम्यमिथ्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये । सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले कितने जीव हैं ? असंख्यात है। विशेषार्थ-आदेशकी अपेक्षा जो सब मार्गणाओंमें परिमाण कहा है सो किस मार्गणावाले जीवोंका कितना प्रमाण है, किस मार्गणामें किन कारणोंसे कितनी प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीव होते हैं, इन सब बातोंका विचार करके विवक्षित मार्गणामें विभक्तिवाले तथा विभक्ति और अविभक्तिवाले जीवोंका प्रमाण निकाल लेना चाहिये । विशेष वक्तव्य न होने से अलग अलग विशेषार्थ नहीं लिखा। इसप्रकार परिमाणानुयोगद्वार समाप्त हुआ। ६१७५.क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सब लोकमें रहते है। छब्बीस प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग या लोकके असंख्यात बहुभाग या सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं। सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रमें रहते हैं ? अविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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