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________________ १६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे : [पयडिविहत्ती २ हार०-आहारमिस्स०-परिहार० वत्तव्वं । १७२.इंदियाणुवादेण एइंदियबादरसुहुम-तेसिंपज्ज०-अपज्ज० छव्वीसपयडि० विहत्तिया केत्तिया ? अणंता । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त० ओघभंगो। एवं वणप्फदि-णिगोद०-तेसिं-बादर-सुहम-तेसिं-पज०-अपज०-मदि-सुदअण्णाणि-मिच्छादि०-असण्णि त्ति वत्तव्वं । पंचिंदिय-पंचिं० पज-तस-तसपज० मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०चउक्क० विह० अविह० णारयभंगो, बारसक०-णवणोकसाय० मणुसभंगो । एवं पंचमण-पंचवचि०-आभिणि-सुद०-ओहि०-चक्खु०-ओहिदंस०-सुक्क०-सणि ति। ६१७३. कायजोगीसु मिच्छत्त-अणंताणु० चउक्क० विह० के० १ अणंता । अविह० केत्तिया ? असंखेजा। सम्मत्त-सम्मामि० विह० अविह० ओघभंगो। बारसक०णवणोकसाय० विह० केत्ति० ? अणंता। अविह० संखेजा। एवमोरालिय०-अचक्खु० भवसिद्धि०-आहारएत्ति वत्तव्वं । ओरालियमिस्स० मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोकसंख्यात हैं। तथा बारहकषाय और नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी और परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके कहना चाहिये। ६१७२. इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रिय तथा इनके बादर और सूक्ष्म तथा इन दोनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। तथा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा परिमाण ओघके समान है। इसीप्रकार वनस्पतिकायिक और निगोदिया जीव तथा इनके बादर और सूक्ष्म तथा इन दोनोंके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके कहना चाहिये। पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रस पर्याप्त जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीवोंका परिमाण नारकियोंके समान है । तथा बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्ति और अविभक्तिवाले जीवोंका परिमाण सामान्य मनुष्योंके समान है। इसीप्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले और संज्ञी जीवोंके कहना चाहिये । ६१७३.काययोगी जीवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । तथा अविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्ति और अविभक्तिवाले काययोगी जीवोंका परिमाण ओषके समान है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले काययोगी जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। तथा अविभक्तिवाले काययोगी जीव संख्यात हैं। इसीप्रकार औदारिककाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके कहना चाहिये । औदारिकमिश्रकाययोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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