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________________ १४८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [पयडिविहत्ती २ हत्तिया चेदि ८। बारसकसाय-णवणोकसायाणं सिया विहत्तिओ सिया विहत्तिया । एवमाहार०-आहारमिस्स जोगीणं । १५७. वेदाणुवादेण इत्थिवेदेसु मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्काणं विहत्तिया अविहत्तिया च णियमा अस्थि । अट्ठकसाय-णqसयवेदाणं सिया सव्वे जीवा विहत्तिया, सिया विहत्तिया च अविहत्तिओ च, सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च एवं तिण्णि भंगा। चचारिसंजलण-अहणोकसायाणं णियमा अस्थि विहत्तिया, अविहत्तिया णत्थि । एवं णवंस०, णवरि इत्थिवेदे णवूस० मंगो। प्ररिसवेदे मिच्छत्तसम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु० चउक्काणं विहत्तिया अविहत्तिया च णियमा अस्थि । अटक०-अहणोकसाय० सिया सव्वे जीवा विहत्तिया, सिया विहत्तिया च अविहत्तिओ च, सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च एवं तिण्णि भंगा। चत्तारिसंजलण-पुरिसवेदाणं विहत्तिया णियमा अस्थि । अवगदवेदेसु चउवीसहं पयडीणं सिया सव्वे जीवा और एक जीव अविभक्तिवाला है ७ । कदाचित् अनेक जीव विभक्तिवाले और अनेक जीव अविभक्तिवाले है ८ । तथा बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी अपेक्षा कदाचित् एक जीव विभक्तिवाला है और कदाचित अनेक जीव विभक्तिवाले हैं। इसीप्रकार आहारक काययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके कथन करना चाहिये। ६१५७. वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी जीवों में मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यगमिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि आठ कषाय और नपुंसकवेदकी अपेक्षा कदाचित् सभी जीव विभक्तिवाले हैं । कदाचित् अनेक जीव विभक्तिवाले और एक जीव अविभक्तिवाला है। कदाचित् अनेक जीव विभक्तिवाले और अनेक जीव अविभक्तिवाले हैं। इस प्रकार तीन भंग होते है । चार संज्वलन और आठ नोकषायोंकी अपेक्षा सभी स्त्रीवेदी जीव नियमसे विभक्तिवाले हैं, अविभक्तिवाले नहीं हैं। नपुंसकवेदी जीवोंके इसीप्रकार कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदके स्थानमें नपुंसकवेद कहना चाहिये । पुरुषवेदी जीवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्ममिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले और अविभक्ति जीव नियमसे हैं । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध आदि आठ कषाय और आठ नोकषायोंकी अपेक्षा कदाचित् सभी पुरुषवेदी जीव विभक्तिवाले हैं १। कदाचित् अनेक जीव विभक्तिवाले और एक जीव अविभक्तिवाला है २ । कदाचित् अनेक पुरुषवेदी जीव विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले हैं ३ । इसप्रकार तीन भंग होते हैं। चार संज्वलन और पुरुषवेदकी अपेक्षा सभी पुरुषवेदी नियमसे विभक्तिवाले हैं। अपगतवेदियों में कदाचित् सभी अपगतवेदी जीव चौबीस प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले हैं १। कदाचित् अनेक जीव अविभक्तिवाले और एक जीव विभक्तिबाला है २ ! कदाचित् अनेक जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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