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________________ १४६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ $ १५५. मणुस्स-अपज० सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो छव्वीसं पयडीणं णियमा विहत्तिया, अविहत्तिया णत्थि । सम्मत्तस्स अह भंगा ८ । तं जहा, सिया विहत्तिओ १, सिया अविहत्तिओ २, सिया विहत्तिया ३, सिया अविहत्तिया ४, सिया विहत्तिओ च सिया अविहत्तिओ च ५, सिया विहत्तिओ च सिया अविहत्तिया च ६, सिया विहत्तिया च अविहत्तिओ च ७, सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च ८ । एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि वत्तव्यं । बेमण० -बेवचि० मिच्छत्त-सम्मत सम्मामि० -अणंताणु ० चउकाणं विहत्तिया अविहत्तिया च णियमा अत्थि । बारसक० - णवणोकसाय० सिया सव्वे जीवा विहत्तिया, सिया विहत्तिया च अविहत्तिओ च, सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च, एवं तिणि भंगा । एवमाभिणि० सुद० - ओहि ० -मणपञ्जव० विशेषार्थ - ये ऊपर जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें २६ प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले तो सभी जीव हैं पर सम्यक्त्व और सम्यगमिध्यात्वकी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले भी नाना जीव होते हैं । १५५. लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो नियमसे सम्यक्प्रकृति और सम्यगमिध्यात्वसे अतिरिक्त शेष छब्बीस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले होते हैं। उक्त छब्बीस प्रकृतियोंकी अविभक्तिवाले नहीं होते हैं। तथा सम्यक्प्रकृतिकी अपेक्षा आठ भंग होते हैं । वे इसप्रकार हैं- कदाचित सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला एक जीव होता है १ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाला एक जीव होता है २ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं ३ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं ४ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला एक जीव और अविभक्तिवाला एक जीव होता है ५ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाला एक जीव और अविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं ६ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले अनेक जीव और अविभक्तिवाला एक जीव होता है ७ । कदाचित् सम्यक्प्रकृतिकी विभक्ति और अविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं ८। इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्व की अपेक्षा भी आठ भंग कहना चाहिये । असत्य और उभय इन दो मनोयोगी और इन्हीं दो वचनयोगी जीवोंमें मिध्यात्व, सम्यक्प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीकी विभक्तिवाले और अविभक्तिवाले जीव नियमसे हैं । तथा बारह कषाय और नौ नोकषायकी विभक्तिवाले कदाचित् सभी जीव हैं १ । कदाचित् अनेक जीव बारह कषाय और नौ नोकषार्योकी विभक्तिवाले और . एक जीव अविभक्तिवाला है २ । कदाचित् अनेक जीव बारह कषाय और नौ नोकपायोंकी विभक्तिवाले और अनेक जीव अविभक्तिवाले हैं ३ । इसप्रकार तीन भंग होते हैं । इसीप्रकार मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी, मनः पर्ययज्ञानी, चक्षुदर्शनी, अचक्षु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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