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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिविहत्तीए कालाणुगमो १२१ ___ १३३. लेस्साणुवादेण किण्ह-णील-काउलेस्सासु मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय० विहत्ति० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० तेत्तीस सत्तारस सत्त सागरोवमाणि सादिरेयाणि । सम्मत्त०-सम्मामि० विहत्ति० जह० एगसमओ, उक्क० मिच्छत्तभंगो। तेउपम्म-लेस्सासु मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय० विहत्ति० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० बे अहारस सागरो० सादिरेयाणि । एवं सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं वचब्वं । णवरि विह० जह० एगसमओ। सुक्कलेस्साए मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-सोलसकसाय-णवणोक० विह० केव० ? जह० अंतोमु० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसंसागरोवमाणि सादिरेयाणि । - ६१३४. अभवसिद्धिय० छब्बीसण्हं पयडीणं विह केव० १ अणादिया अपज्जवसिदा। त्वकी सत्तावाला जो संयत जीव अन्तर्मुहूर्त काल तक असंयत रह कर पुनः संयत हो जाता है, उस असंयतके सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त होता है। कोई एक वेदक सम्यग्दृष्टि संयत जीव मर कर तेतीस सागरकी आयुवाला देव हुआ और वहांसे मर कर मनुष्य पर्यायमें आठ साल तक असंयत रहा उसके सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर प्राप्त होता है । ६१३३. लेश्या मार्गणाके अनुवादसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्यामें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कृष्ण लेश्यामें साधिक तेतीस सागर, नील लेश्यामें साधिक सत्रह सागर और कापोत लेश्यामें साधिक सात सागर है । तथा उक्त तीन लेश्याओंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यमिथ्यात्वका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल मिथ्यात्वप्रकृतिके उत्कृष्ट कालके समान है। पीत और पद्म लेश्यामें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पीतलेश्यामें साधिक दो सागर और पालेश्यामें साधिक अठारह सागर है। उक्त दोनों लेश्याओंमें इसीप्रकार सम्यक्प्रकृति और सभ्यग्मिध्यात्वका काल कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनका जघन्य काल एक समय है। शुक्ललेश्यामें मिथ्यात्व सम्यक्प्रकृति, सम्यमिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका काल कितना है ? मिथ्यात्व सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और शेषका जघन्य काल एक समय है। तथा सभी प्रकृतियोंका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। विशेषार्थ-उक्त छहों लेश्याओंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य कालको छोड़कर शेष समस्त प्रकृतियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी लेश्याके जघन्य और उत्कृष्ट कालके समान जानना चाहिये । छहों लेश्याओंमें सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य काल जो एक समय कहा है वह उक्त दो प्रकृतियोंकी उद्वेलनामें एक समय शेष रहने पर उस उस लेश्याके प्राप्त होनेसे बन जाता है। ६१३४.अभव्योंके छब्बीस प्रकृतियोंका काल कितना है ? अनादि-अनन्त है। क्षायिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001408
Book TitleKasaypahudam Part 02
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages520
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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