SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहित कषायप्राभृत है वह नागहस्ति आचार्यने की है। किन्तु जयधवलाकार इस मतसे सहमत नहीं हैं । उनका कहना है कि 'उक्त ५३ गाथाओंका कर्ता यदि नागहस्ति आचार्यको माना जायेगा तो ऐसी अवस्थामें गुणधराचार्य अल्पज्ञ ठहरेंगे। अतः २३३ गाथाओंके होते हुए भी जो 'गाहासदे असीदे' आदि प्रतिज्ञा की है वह पन्द्रह अधिकारोंमेंसे अमुक अमुक अधिकारमें इतनी इतनी गाथाएं हैं यह बतलानेके लिये की है। अर्थात् 'गाहासदे असीदे' के द्वारा ग्रन्थकारने कषायप्राभृतकी कुल गाथाओंका निर्देश नहीं किया है किन्तु जो ‘गाथाएं पन्द्रह अधिकारोंसे सम्बन्ध रखती हैं उनका ही निर्देश किया है। और ऐसी गाथाएं १८० हैं । शेष ५३ गाथाओंमेंसे १२ सम्बन्धगाथाएं किसी एक अधिकारसे सम्बद्ध नहीं है क्योंकि ये गाथाएं अमुक अमुक अधिकारसे सम्बन्ध रखनेवाली गाथाओंका निर्देश करती है। श्रद्धापरिमाणनिर्देशसे सम्बन्ध रखनेवाली ६ गाथाएं भी किसी एक अधिकारसे सम्बद्ध नहीं है क्योंकि श्रद्धापरिमारणनिर्देश न तो कोई स्वतंत्र अधिकार है और न किसी एक अधिकारका ही अंग है। रह जाती हैं शेष ३५ गाथाएं, सो ये गाथाएं तीन गाथाओंमें कहे गये पांच अधिकारोंमेंसे बन्धकनामके अधिकारमें प्रतिबद्ध हैं अतः उनको भो १८० में सम्मिलित नहीं किया है।" जयधवलाकार श्री वीरसेनस्वामीका उक्त समाधान यद्यपि हृदयको लगता है फिर भी यह जिज्ञासा बनी ही रहती है कि जब संक्रमवृत्ति सम्बन्धी ३५ गाथाएँ बन्धक अधिकारसे सम्बद्ध हैं तो उनको १८० में सम्मिलित क्यों नहीं किया ? यहाँ एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि श्री वीरसेनस्वामीने जयधवलामें जहाँ कहीं कसायपाहुडकी गाथाओंका निर्देश किया है वहाँ १८० का ही निर्देश किया है, समस्त गाथाओंकी गिनती करानेके सिवा अन्यत्र कहीं भी २३३ गाथाओंका उल्लेख हमारे देखने में नहीं आया। जब कि १८० का उल्लेख इसी खण्डमें अनेक जगह आता है। यहाँ यह स्मरण दिला देना अनुचित न होगा कि श्वेताम्बरग्रन्थ कर्मप्रकृतिमें कषायप्राभृतकी जो अनेक गाथाएं पाई जाती हैं वे संक्रमवृत्ति सम्बन्धी इन ३५ गाथाओंमें से ही पाई जाती हैं। और कुछ प्राचार्य इनका कर्ता नागहस्ति आचार्यको मानते हैं। श्वेताम्बरसम्प्रदायमें वाचकवंशके प्रस्थापक और कर्मप्रकृतिके वेत्ता एक नागहस्ति आचार्यका नाम आता है जैसा कि हम आगे बतलायेंगे। शायद इसी लिये तो संक्रमवृत्ति सम्बन्धी कुछ गाथाएं उधर नहीं पाई जाती हैं ? अस्तु, जो कुछ हो । किन्तु इतना स्पष्ट है कि कसायपाहुडकी १८० गाथाओंके सम्बन्धमें तो उनके रचयिताको लेकर कोई मतभेद नहीं था, सभी उनका कर्ता गुणधर आचार्यको मानते थे। किन्तु शेष ५३ गाथाओंके रचयिताके सम्बन्धमें मतभेद था। कुछ आचार्य उनका कर्ता नागहस्ति आचार्यको मानते थे और कुछ गुणधराचार्यको ही मानते थे। आचार्य यतिवृषभका इस बारेमें क्या मत था यह उनके चूर्णिसूत्रोंसे ज्ञात नहीं होता। ___ कसायपाहुडके रचयिता आचार्य गुणधरके सम्बन्धमें यदि कुछ थोड़ा बहुत ज्ञात हो सकता है तो वह केवल जयधवला और श्रुतावतारोंसे ही ज्ञात हो सकता है। अन्यत्र उनका कुछ भी उल्लेख नहीं पाया जाता। श्वेताम्बर परम्परामें भी इस नामके किसी आचार्यआचार्य के होनेका कोई सङ्केत नहीं मिलता। जयधवला भी केवल इतना ही बतलाती है गुणधर कि महावीर भगवानके निर्वाणलाभके पश्चात् ६८३ वर्ष बीत जाने पर भरतक्षेत्रमें और जब सभी आचार्य सभी अंगों और पूर्वो के एकदेशके धारक होने लगे तो अंगों उनका समय और पोका एकदेश आचार्यपरम्परासे गणधरको प्राप्त हआ। वे ज्ञानप्रवाद नामक पंचम पूर्वके दसवें वस्तु अधिकारके अन्तर्गत तीसरे कसायपाहुडरूपी समुद्रके (१) पृ० ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy