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________________ गा० २१ ] पेज्जदोसेसु बारस अणियोगद्दाराणि ४०१ तिरिक्खपज्जत्त-पचिंदियतिरिक्खजोणिणी-पंचिंदियतिरिक्खअपज्जतएसु पेज्ज-दोसविहत्तिएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा । एवं मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु मणुसअपज्जत्त-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय-तस तेसिमपज्जत्त०बादरपुढवि आउ०तेउ०वणप्फदिपत्तेय०णिगोदपडिहिदपज्जात्ताणं च वत्तव्वं । बादरवाउपज्जत्त० लोगस्स संखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा । ___$३८६. देवगदीए देवेसु पेज्जदोसविहत्तिएहि केवडियं खत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अहणव चोद्दसभागा वा देसूणा । एवं भवणवासियादि जाव सोहम्मीसाणेत्ति वत्तव्वं । णवरि, भवणवासिय-वाण-तर-जोइसियाणं अद्भुट अट्ठ णव चोदसभागा विशेषार्थ-यहां सामान्य नारकी और सातों नरकके नारकियोंका वर्तमानकालीन और अतीतकालीन स्पर्श बतलाया है। ऊपर जो लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श कहा है वह सर्वत्र वर्तमानकालीन स्पर्श जानना चाहिये। यद्यपि विहारवत्स्वस्थान आदि कुछ अवस्थाओंकी अपेक्षा अतीतकालीन स्पर्श भी लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है पर यहां अवस्थाविशेषोंकी अपेक्षा प्ररूपणाकी मुख्यता नहीं है। तथा ऊपर सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग और एक भाग, दो भाग आदि रूप जो स्पर्श कहा है वह क्रमसे सामान्य नारकी और दूसरी, तीसरी आदि पृथिवियोंके नारकियोंका अतीतकालीन स्पर्श जानना चाहिये। पहली पृथिवीमें दोनों प्रकारका स्पर्श लोकका असंख्यातवां भाग है। अवस्थाविशेषोंकी अपेक्षा कहां कितना वर्तमान कालीन स्पर्श है और कहां कितना अतीतकालीन स्पर्श है यह अन्यत्रसे जान लेना चाहिये। __पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंमें पेज्जवाले और दोषवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है । इसीप्रकार मनुष्य पर्याप्त और योनिमती मनुष्योंके तथा लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य और सभी विकलेन्द्रिय, जीवों के, तथा पंचेन्द्रिय और त्रस तथा इन दोनोंके अपर्याप्त जीवोंके तथा बादर पृथिवी कायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त और निगोदप्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंके स्पर्श कहना चाहिये। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंने लोकका संख्यातवां भाग और सर्व लोक स्पर्श किया है। ६३८६. देवगतिमें देवोंमें पेज्जवाले और दोषवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रस नालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और नौ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसीप्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म और ऐशान स्वर्गतकके देवोंके स्पर्शका कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर (१) तिरि० पज्जत्तापज्जत्तपं अ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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