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________________ ३६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती ? [कसाया]दोसो, माया-लोभकसाया पेजं, णव णोकसाया णोपेजं णोदोसो त्ति घेत्तव्वं, अण्णहा णेरइएसु भागाभागाभावो होजा णवूसयवेदोदइल्लाणं णेरइयाणं सव्वेसि पि पेजभावुवलंभादो। एवमण्णासु मग्गणासु वि; तिवेदोदयवदिरित्तमग्गणाभावादो। पुव्विल्लवक्खाणेण कधं ण विरोहो ? अप्पियाणप्पियणयावलंबणादो ण विरोहो । एवं सत्तसु पुढवीसु । देवगदीए पेजं सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? संखेजा भागा। दोसो लोभकषाय पेज्ज हैं तथा नौ नोकषाय नोपेज्ज और नोदोष हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिये, अन्यथा नारकियोंमें भागाभागका अभाव हो जायगा, क्योंकि पूर्वोक्त कथनानुसार पेज्ज और दोषकी व्यवस्था करने पर नपुंसकवेदके उदयसे युक्त सभी नारकियोंके पेज्जभाव पाया जाता है। इसीप्रकार अन्य मार्गणाओंमें भी समझना चाहिये, क्योंकि तीनों वेदोंके उदयके बिना कोई मार्गणा नहीं पाई जाती है। शंका-पहले अरति, शोक, भय और जुगुप्साको दोषरूप और शेष नोकषायोंको पेज्जरूप कह आये हैं और यहाँ पर सभी नोकषायोंको नोपेज्ज और नोदोषरूप कहा है। अतः पूर्व कथनके साथ इस कथनका विरोध क्यों नहीं है ? समाधान-मुख्य और गौण नयका अवलंबन लेनेसे विरोध नहीं है। विशेषार्थ-ऊपर 'पेज्जं वा दोसो वा' इस गाथाका व्याख्यान करते समय नैगमनयकी अपेक्षा नौ नोकषायोंमेंसे हास्य, रति और तीनों वेदोंको पेज्ज तथा शेष नोकषायोंको दोष कहा है। और यहां असंग्रहिक नैगमनयकी अपेक्षा बारह अनुयोगद्वारोंका कथन करते समय नौ नोकषायोंको नोपेज्ज और नोदोष कहा है जो युक्त नहीं प्रतीत होता । इसका यह समाधान है कि यदि यहां पूर्वोक्त दृष्टिसे नौ नोकषायोंको पेज्ज और दोष माना जायगा तो पेज्ज और दोषरूपसे सभी मार्गणाओंमें जीवोंका भागाभाग करना कठिन हो जायगा । और पेज्ज और दोषकी अपेक्षा जीवोंका भागाभाग न हो सकनेसे अन्य अनुयोगद्वारोंके द्वारा भी पेज्ज और दोषरूपसे जीवोंका स्पर्शन, क्षेत्र, काल और अल्पबहुत्व आदि नहीं बताये जा सकेंगे। अतः ऊपर जिस दृष्टिसे नौ नोकषायोंको पेज्ज और दोष कहा है उसे गौण कर देना चाहिये और नौ नोकषाय नोपेज्ज और नोदोष हैं इस दृष्टिको प्रधान करके यहां पेज्ज और दोषकी अपेक्षा बारह अनुयोगद्वारोंके द्वारा जीवोंका स्पर्शन, क्षेत्र भागाभाग आदि कहना चाहिये । नैगमनयमें यह सब विवक्षा भेद असंभव भी नहीं है। क्योंकि उसकी गौण और मुख्य भावसे सभी विषयोंमें प्रवृत्ति होती है । इसप्रकार विचार करने पर विवक्षाभेदसे दोनों कथन समीचीन हैं यह सिद्ध हो जाता है। सामान्य नारकियोंमें पेज्ज और दोषकी अपेक्षा जिसप्रकार भागाभाग बतलाया है उसीप्रकार सातों पृथिवियोंमें समझना चाहिये। देवगतिमें पेज्जयुक्त देव समस्त देवोंके कितने भाग हैं ? पेज्जयुक्त देव समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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