SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० १३-१४ ] अत्याहियारणिदेसो १८३ गाहाओ वि ण तत्थ हवंति; अद्धापरिमाणणिद्देसस्स पण्णारसअत्थाहियारेसु अभावादो। संकमम्मि वुत्तपणतीसवित्तिगाहाओ बंधगत्थाहियारपडिबद्धाओ त्ति असीदि-सदगाहासु पवेसिय किण्ण पइज्जा कदा १ वुच्चदे, एदाओ पणतीसगाहाओ तीहि गाहाहि परूविदपंचसु अत्थाहियारेसु तत्थ बंधगेत्ति अत्थाहियारे पडिबद्धाओ । एदाओ च ण तत्थ पवेसिदाओ तीहि गाहाहि परूविदअत्थाहियारे चेव पडिबद्धत्तादो। अहवा अत्थावत्तिलब्भाओ ति ण तत्थ एदाओ पवेसिय वुत्ताओ। १४८. असीदि-सदगाहाओ मोत्तूण अवसेससंबंधद्धापरिमाणणिद्देस-संकमणगाहाओ जेण णागहत्थिआइरियकयाओ तेण 'गाहासदे असीदे' ति भणिदूण णागहत्थिआइरिएण पइज्जा कदा इदि के वि वक्खाणाइरिया भणंति; तण्ण घडदे; संबंधगाहाहि अद्धापरिमाणणिद्देसगाहाहि संकमगाहाहि य विणा असीदि-सदगाहाओ चेव भणंतस्स गुणहरभडारयस्स अयाणत्तप्पसंगादो। तम्हा पुव्वुत्तत्थो चेव घेत्तव्यो। इन बारह गाथाओंका उपयोग होता है। अद्धापरिमाण निर्देशमें कही गईं छह गाथाएं भी पन्द्रह अर्थाधिकारोंमेंसे किसी भी अधिकार में नहीं पाई जाती हैं, क्योंकि अद्धापरिमाणका निर्देश पन्द्रह अर्थाधिकारों में नहीं किया गया है। शंका-संक्रमणमें कही गईं पैंतीस वृत्तिगाथाएं बन्धक नामक अर्थाधिकारसे प्रतिबद्ध हैं, इसलिये इन्हें एकसौ अस्सी गाथाओंमें सम्मिलित करके प्रतिज्ञा क्यों नहीं की ? अर्थात् १८० के स्थानमें २१५ गाथाओंकी प्रतिज्ञा क्यों नहीं की ? समाधान-ये पैंतीस गाथाएं तीन गाथाओंके द्वारा प्ररूपित किये गये पांच अर्थाधिकारोंमेंसे बन्धक नामके अर्थाधिकारमें ही प्रतिबद्ध हैं, इसलिये इन पैंतीस गाथाओंको एकसौ अस्सी गाथाओंमें सम्मिलित नहीं किया, क्योंकि तीन गाथाओंके द्वारा प्ररूपित अर्थाधिकारोंमेंसे एक अर्थाधिकारमें ही वे पैंतीस गाथाएं प्रतिबद्ध हैं। अथवा, संक्रममें कही गईं पैंतीस गाथाएं बन्धक अर्थाधिकार में प्रतिबद्ध हैं यह बात अर्थापत्तिसे ज्ञात हो जाती है । इसलिये ये गाथाएं एकसौ अस्सी गाथाओंमें सम्मिलित करके नहीं कही गई हैं। १४८. चूंकि एकसौ अस्सी गाथाओंको छोड़कर सम्बन्ध, अद्धापरिमाण और संक्रमणका निर्देश करनेवाली शेष गाथाएं नागहस्ति आचार्यने रची हैं, इसलिये 'गाहासदे असीदे' ऐसा कह कर नागहस्ति आचार्यने एकसौ अस्सी गाथाओंकी प्रतिज्ञा की हैं, ऐसा कुछ व्याख्यानाचार्य कहते हैं। परन्तु उनका ऐसा कहना घटित नहीं होता है, क्योंकि संबंधगाथाओं, अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली गाथाओं और संक्रम गाथाओंके बिना एकसौ अस्सी गाथाएं ही गुणधर भट्टारकने कही हैं यदि ऐसा माना जाय तो गुणधर भट्टारकको अज्ञपनेका प्रसङ्ग प्राप्त होता है। इसलिये पूर्वोक्त अर्थ ही ग्रहण करना चाहिये । विशेषार्थ-इस कसायपाइडमें पन्द्रह अधिकारोंसे संबंध रखनेवाली १८० गाथाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy