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________________ १८० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पेज्जदोसविहत्ती ? ६१४६. संपहि एदाओ पण्णरस-अत्थाहियारपडिबद्धदोसुत्तगाहाओ पुव्विल्लअट्टहत्तरि-सयगाहासु पक्खित्ते असीदि-सयगाहाओ होति । तासिं पमाणमेदं १८० । पुणो एत्थ बारह संबंधगाहाओ १२ अद्धापरिमाणणिदेसह भाणद-छगाहाओ ६ पुणो पयडिसंकमम्मि 'संकम-उवक्कमविही०' एस गाहा प्पहुडि पणतीसं संकमावत्तिगाहाओ च ३५ पुव्विल्लअसीदि-सयगाहासु पक्खित्ते गुणहराइरियमुहकमलविणिग्गयसव्वगाहाणं समासो तेत्तीसाहियविसदमेत्तो होदि २३३ ।। स्वतन्त्ररूपसे उल्लेख किया है। पर जिन छह गाथाओंद्वारा इसका वर्णन किया है वे एकसौ अस्सी गाथाओंमें सम्मिलित नहीं हैं। अतः प्रतीत होता है कि अद्धापरिमाणनिर्देश नामका पन्द्रहवां स्वतन्त्र अधिकार न होकर कंठीके सभी मुक्ताफलोंमें पिरोये गये डोरेके समान पन्द्रहों अर्थाधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाला साधारण अधिकार है। यही कारण है कि वीरसेन स्वामीने इसको पन्द्रहवां अर्थाधिकार नहीं बताया है किन्तु पन्द्रहों अर्थाधिकारोंमें उपयोगी पड़नेवाला अधिकार बतलाया है। मालूम होता है कि गुणधर आचार्यकी भी यही दृष्टि रही होगी। अन्यथा वे उस अधिकारसे संबन्ध रखनेवाली छह गाथाओंका १८० गाथाओंके साथ अवश्य निर्देश करते । १४६. पन्द्रह अर्थाधिकारोंके नाम निर्देशसे संबन्ध रखनेवाली इन दो सूत्रगाथाओंको पहलेकी एकसौ अठहत्तर गाथाओं में मिला देने पर एकसौ अस्सी गाथाएं होती हैं। उनका प्रमाण गिनतीमें यह १८० होता है । इनके सिवा जो बारह संबन्धगाथाएं, अद्धापरिमाणका निर्देश करनेके लिये कही गई छह गाथाएं तथा प्रकृतिसंक्रमणमें आई हुई 'संकम-उवक्कमविहीं' इस गाथासे लेकर संक्रमणनामक अर्थाधिकारकी पैंतीस वृत्तिगाथाएं पाई जाती हैं उन्हें पहलेकी एकसौ अस्सी गाथाओंमें मिला देने पर गुणधर आचार्य के मुखकमलसे निकली दुई समस्त गाथाओंका जोड़ दोसौ तेतीस होता है। विशेषार्थ-यद्यपि गुणवर आचार्यने 'गाहासदे असीदे' इस पदके द्वारा कषायप्राभृतको एकसौ अस्सी गाथाओंद्वारा कहनेकी प्रतिज्ञा की है फिर भी समस्त कषायप्राभृतमें दोसौ तेतीस गाथाएं पाई जाती हैं जिनका निर्देश जयधवलाकारने ऊपर किया है । जयधवलाकारका कहना है कि प्रारंभमें आईं हुईं, पन्द्रह अधिकारोंमें गाथाओंका विभाग करनेवालीं बारह संवन्धगाथाएं, किसका कितना काल है इसप्रकार दर्शनोपयोग आदिके कालके अल्पबहुत्वके संबन्धसे आई हुईं अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली छह गाथाएं तथा पैंतीस संक्रमणवृत्तिगाथाएं इसप्रकार ये त्रेपन गाथाएं भी गुणधर आचार्यकृत हैं। अतः कुल गाथाओंका जोड़ दोसौ तेतीस हो जाता है। जिसका खुलासा नीचे कोष्ठक देकर किया गया है। उसमेंसे पहले पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें जो १७८ गाथाएँ आई हैं, उन्हें दिखानेवाला कोष्ठक देते हैं (१) गाथांकः २४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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