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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [१ पेज्जदोसविहत्ती चत्तारि य खवणाए एक्का पुण होदि खाणमोहस्स । एका संगहणीए अट्ठाबीसं समासेण ॥ ८ ॥ $१३१. 'चत्तारि य खवणाए' त्ति भणिदे किट्टीणं खवणाए चत्तारि गाहाओ। ताओ कदमाओ? 'किं वेदंतो किट्टि खवेदि०' एस गाहा पहुडि जाव 'किट्टीदो किर्टि पुण.' एस गाहेत्ति ताव चत्तारि गाहाओ ४ । 'एका पुण होदि खीणमोहस्स' एवं भणिदे खीणकसायम्मि पडिबद्धा एका गाहेत्ति घेत्तव्वं १ । सा कदमा ? "खीणेसु कसाएसु य सेसाणं.' एसा एक्का चेव गाहा । ‘एक्का संगहणीए' ति वुत्ते संगहणीए 'सकोमणमोवट्टण' एसा एक्का चेव गाहा होदि ति जाणाविदं १ । 'अट्ठाबीसं समासेण' चरित्तमोहक्खवणाए पडिबद्धगाहाणं समासो अट्ठावीसं चेव होदि त्ति जाणाविदं । ६१३२. चारित्तमोहणीयक्खवणाए पडिबद्धअट्ठावीसगाहाणं परिमाणणिद्देसो किमहं कदो ? 'जम्मि अत्थाहियारम्मि जदि गाहाओ होंति ताओ भणामि' ति पइज्जावयणं सोदूण जम्मि जम्मि अत्थाहियारविसेसे पडिबद्धगाहाओ दीसंति तेसिं तेसिमत्था बारह संग्रहकृष्टियोंकी क्षपणाके कथनमें चार गाथाएँ आई हैं। क्षीणमोहके कथनमें एक गाथा आई है । तथा संग्रहणीके कथनमें एक गाथा आई है। इसप्रकार चारित्रमोहकी क्षपणासे संबन्ध रखनेवाली कुल गाथाओंका जोड़ अहाईस होता है।॥८॥ 'चत्तारि य खवणाए' ऐसा कहने का तात्पर्य यह है कि बारह संग्रहकृष्टियोंकी क्षपणाके कथनमें चार गाथाएं आई हैं। वे कौनसी हैं ? 'किं वेदंतो किट्टि खवेदि०' इस गाथासे लेकर 'किट्टीदो किट्टि पुण०' इस गाथा तक चार गाथाएं हैं। 'एक्का पुण होदि खीणमोहस्स' इस प्रकार कथन करने का तात्पर्य यह है कि क्षीणकषायके वर्णनसे संबन्ध रखनेवाली एक गाथा है । वह कौनसी है ? 'खीणेसु कसाएसु य सेसाणं०' यह एक ही गाथा है। 'एक्का संगहणीए' इस कथन से यह सूचित किया है कि संग्रहणीके कथनमें 'संकामणमोवट्टण०' यह एक ही गाथा है । 'अठ्ठाबीसं समासेण' इस पदके द्वारा यह सूचित किया है कि चारित्रमोहकी क्षपणाके कथनसे संबन्ध रखनेवाली गाथाओंका जोड़ अट्ठाईस ही है । शंका-चारित्रमोहकी क्षपणाके कथनसे संबन्ध रखनेवाली अट्ठाईस गाथाओंके परिमाणका निर्देश किसलिये किया है ? समाधान-'जिस अर्थाधिकारमें जितनी गाथाएं पाई जाती हैं उनका मैं कथन करता हूं' इसप्रकारके प्रतिज्ञावचनको सुनकर जिस जिस अर्थाधिकारविशेषसे संबन्ध रखनेवाली गाथाएं दिखाई पड़ती हैं उन उन अर्थाधिकारविशेषोंको पृथक् पृथक् अधिकारपना प्राप्त (१) सूत्रगाथाङ्क: २१४ । (२) वेदेतो अ०, ता०। (३) सूत्रगाथाङ्कः २२९ । (४) सूत्रगाथाङ्कः २३२ । (५) सूत्रगाथाङ्कः २३३ । (६) तेसिम-अ०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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