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________________ जाहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती १ 'जोगवग्गणाओ कम्हि कसायम्मि ०' ('वग्गणाहि य अविरहिदं काहि विरहिदं चावि ' ) जाव एस गाहेति ताव सत्त गाहाओ ७ । एत्थ गाहासमासो चोदस १४ । 'सोलस य चउट्टाणे' चउट्ठाणं णाम अट्टमो अत्याहियारो ८ । तत्थ सोलस गाहाओ होंति । ताओ काओ त्ति वृत्ते बुच्चदे, 'कोहो चंडव्विहो वुत्तो ० ' एस गाहा पहुडि 'असैंण्णी खलु बंधदि०' जाव एस गाहेत्तिं ताव सोलस गाहाओ होंति । एत्थ गाहासमासो ३० । ' वियंजणे पंच गाहाओ' वंजणं णाम णवमो अत्थाहियारो ६ । तत्थ पंच सुत्तगाहाओ पडिब ओ | ताओ कमाओ ? 'कोहो य कोध (कोप) रोसो ० ' एस गाहा पहुडि जाव 'सॉसपत्थण ० ' एस गाहेत्ति ताव पंच गाहाओ ५ । एत्थ गाहासमासो पंचतीस ३५ | दंसणमोहस्सुवसामणाए परणारस होंति गाहाओ । पंचैव सुत्तगाहा दंसणमोहस्स खवणाए ॥५॥ १६० १२५. एदिस्से संबंधगाहाए अत्थो वुच्चदे । तं जहा, दंसणमोहस्स उर्वसामणा णाम दसमो अत्थाहियारो १० । तत्थ पडिबद्धाओ पण्णरस गाहाओ । ताओ कदमाओ ? 'दसँ मोहस्सुवसामओ ०' एस गाहा पहुडि जाव 'सम्मामिच्छादिट्ठी सागारो वा०' एस सात गाथाएं हैं। यहां तक सात अधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली कुल गाथाओंका जोड़ चौदह होता है । चतुःस्थान नामका आठवां अर्थाधिकार है । इस अधिकारमें सोलह गाथाएं हैं । 'वे कौनसी हैं ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि 'कोहो चउव्विहो बुत्तो० ' इस गाथा से लेकर ' असण्णी खलु बंधदि०' इस गाथातक सोलह गाथाएं हैं। यहां तक आठ अधिकारोंसे संबन्ध रखनेवाली कुल गाथाओंका जोड़ तीस होता है। व्यंजन नामका नौवां अधिकार है । इस अधिकारसे संबन्ध रखनेवाली पाँच गाथाएँ हैं । वे कौनसी हैं ? 'कोहो य कोपरोसो०' इस गाथासे लेकर 'सासद पत्थण ०' इस गाथा तक पांच गाथाएं हैं । यहां तक नौ अधिकारोंसे संबंध रखनेवाली कुल गाथाओंका जोड़ पेंतीस होता है । दर्शन मोहनीयकी उपशामना नामक दसवें अर्थाधिकार में पन्द्रह गाथाएं हैं और दर्शन मोहनीयकी क्षपणा नामक ग्यारहवें अर्थाधिकारमें पांच ही सूत्रगाथाएं हैं ॥ ५ ॥ १२५. अब इस संबंधगाथाका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है - दर्शनमोहनीयकी उपशामना नामका दसवां अर्थाधिकार है । इस अर्थाधिकार में पन्द्रह गाथाएं प्रतिबद्ध हैं । वे कौनसी हैं ? 'दंसणमोहस्सुवसामओ' इस गाथासे लेकर 'सम्मामिच्छादिट्ठी सागारो वा' (१) सूत्रगाथाङ्कः ६९ । “उवजोग वग्गणाहिय अविरहिदं काहि विरहिदं चावि । पढमसमओवजुत्तेहिं चरिमसमए च बोद्धव्वा ॥ एसा सत्तमी गाहा" - जयध० प्रे० ५८५२ । 'उवजोगवग्गणात्र कम्हि कसायम्हि०' एषा उपयोगाधिकारस्य तृतीया गाथा भ्रान्तिवशात् सप्तमीगाथास्थाने आपतिता । ( २ ) सूत्रगाथाङ्कः ७०। (३) सूत्रगाथाङ्कः ८५ । (४) सूत्रगाथाङ्कः ८६ । (५) सूत्रगाथाङ्कः ९० । ( ६ ) - सामण्णा अ० आ० । (७) सूत्रगाथाङ्कः ९१ । (८) सूत्र गाथाङ्कः १०५ । ( ६ ) - च्छाइट्ठी आ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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