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________________ ७८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पेज्जदोसविहत्ती कुंडपुरपुरवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्स णाहकुले । तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए ॥२३॥ अच्छित्ता णवमासे अट्ठ य दिवसे चइत्त-सियपक्खे। तेरसिए रत्तीए जादुत्तरफग्गुणीए ? ॥२४॥" एवं गन्भट्ठिदकालपरूवणा कदा । ५६. संपहि कुमारकालपरूवणं कस्सामो । तं जहा, चहत्तमासस्स दो दिवसे २, वइसाहमादि कादूण अठ्ठावीसं वस्साणि २८, पुणो वइसाहमासमादि कादण जाव कत्तियमासोत्ति ताव सत्तमासे च कुमारत्तणेण गमिय ७, तदो मॅग्गसिरकिण्हपक्खदसमीए णिक्खंतोत्ति कुमारकालपमाणं बारसदिवसेहि सत्तमासेहि य अहियअट्ठावीसवासमेत्तं होदि २८-७-१२ । एत्थुवउज्जंतीओ गाहाओ "मणुवत्तणसुहमतुलं देवकयं "सेविऊण वासाई । अट्ठावीसं सत्त य मासे दिवसे य बारसयं ॥२५॥ आभिणिबोहियबुद्धो छट्टेण य मग्गसीसबहुलाए । दसमीए णिक्खंतो सुरमहिदो णिक्खमणपुज्जों ॥२६॥" आया । और वहाँ नौ माह आठ दिन रहकर चैत्र शुक्ला त्रयोदशीकी रात्रिमें उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रके रहते हुए भगवान्का जन्म हुआ ।।२१-२४॥" इस प्रकार गर्भस्थित कालकी प्ररूपणा की। $ ५६. अब कुमारकालकी प्ररूपणा करते हैं । वह इसप्रकार है चैत्र माहके दो दिन, वैसाख माहसे लेकर अट्ठाईस वर्ष तथा पुनः वैसाख माहसे लेकर कार्तिक माहतक सात माह कुमाररूपसे व्यतीत करके अनन्तर मार्गशीर्ष कृष्णा दशमीके दिन भगवान महावीरने जिन दीक्षा ली। इसलिये कुमारकालका प्रमाण सात माह और बारह दिन अधिक अट्ठाईस वर्ष होता है। आगे इस विषयकी उपयोगी गाथाएँ दी जाती हैं "अट्ठाईस वर्ष, सात माह और बारह दिन तक देवोंके द्वारा किये गये मनुष्यसंबन्धी अनुपम सुखका सेवन करके जो आभिनिबोधिक ज्ञानसे प्रतिबुद्ध हुए और जिनकी दीक्षासंबन्धी पूजा हुई ऐसे देवपूजित वर्द्धमान जिनेन्द्रने षष्ठोपवासके साथ मार्गशीर्ष कृष्णा दशमीके दिन जिनदीक्षा ली ॥२५-२६॥" (१) “तिरसीए रत्तीए. . . . '-ध०, आ० । (२) उद्धृता इमा गाथा:-ध० आ० ५० ५३५ । (3) वीसवस्सा-आ० । (४) “मग्गसिरबहुलदसमीअवरण्डे उत्तरासुनावण्णे । तदियसुवणम्हि गहिदं महव्वदं वढमाणेण ॥"-ति० ५० ५० ७५ वीरभ० श्लो ७-१०। “उत्तराफाल्गुनीष्वेव वर्तमाने निशाकरे । कृष्णस्य मार्गशीर्षस्य दशम्यामगमद्वनम् ॥"-हरि० २।५१। “मगसिरबहुलस्स दसमी पक्खेणं पाईणगामिणीए छायाए पोरसीए अभिनिन्विट्टाए . ."-कल्प० सू० ११३ । (५) सेवियूण- अ०, आ०, ता० । “सेविऊण'-५० आ० ५३६ । (६) उद्धृते इमे-ध० आ० ५० ५३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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