________________
१, २, ४, २८.] - वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त
[६३ सेडिपरूवणा दुविहा- अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा चेदि । तत्थ अणंतरोवणिधा ताव उच्चदे । तं जहा- जीवगुणहाणिसलागाहि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेताहि तेरासियकमेण सव्वजोगट्ठाणद्धाणे भागे हिदे एगगुणहाणी आगच्छदि । तं विरलेदूण जहणण
देनेपर यवमध्यके जीव आते हैं। उदाहरणार्थ अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा तीन जीवगुणहानियोंका काल १२ है और त्रस पर्याप्तराशिका प्रमाण १४२२ है। अतः इस राशिमें कुछ कम १२ का अर्थात् ४११ का भाग देनेपर यवमध्यके जीवोंका प्रमाण १२८ होता है जो अर्थसंदृष्टिकी अपेक्षा असंख्यात जगश्रेणि प्रमाण है । यहां यद्यपि मूलमें तीन गुणहानियोंके कालका भाग दिलाया गया है पर वह स्थूल कथन है। सूक्ष्म दृष्टि से विचार करनेपर कुछ कम तीन गुणहानियों के कालका भाग दिलानेपर ही यह संख्या प्राप्त होती है, ऐसा यहां समझना चाहिये। इस प्रकार जब कि त्रस पर्याप्तराशिमें कुछ कम तीन गुणहानियों के कालका भाग देनेपर यवमध्यके जीवोंका प्रमाण आता है तो उस राशिको यवमध्यके जीवोंके प्रमाण रूपसे करनेपर वह कुछ कम तीन गुणहानियोंकी जितनी संख्या होगी उतने यवमध्य प्रमाण प्राप्त होगी, इसमें जरा भी संन्देह नहीं। अब यह देखना है कि इस राशिमेंसे जघन्य योगस्थानको प्राप्त कितने जीव हैं। इसके लिये यह नियम है कि अधस्तन गुणहानियोंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे कुछ कम तीन गुणहानियों के कालको गुणित करनेपर जो लब्ध आवे उसका समस्त त्रस पर्याप्तराशिमें भाग देनेपर जघन्य योगस्थानके जीवोंका प्रमाण आता है। उदाहरणार्थ अधस्तन गुणहानियोंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि ८ है। इससे कुछ कम तीन गुणहानियों के काल ११ को गुणित करनेपर ८८५ प्राप्त होते हैं, और इसका सब त्रस पर्याप्तराशि १४२२ में भाग देनेपर १६ प्राप्त होते हैं जो सबसे जघन्य त्रस पर्याप्त योगस्थानवाले जीवोंका प्रमाण है। सबसे उत्कृष्ट त्रस पर्याप्त योगस्थानवाले जीवोंका प्रमाण भी इसी प्रकार ले आना चाहिये । अतः यह राशि असंख्यात जगश्रेणि प्रमाण है, क्योंकि, जगप्रतरमें जगणिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर यह राशि आती है। अतः सम्पूर्ण त्रस पर्याप्त राशि असंख्यात जगीण प्रमाण है, यह अपने आप सिद्ध हो जाता है । ( कर्मकाण्ड गा. २४५-२४६)
इस प्रकार प्रमाण प्ररूपणा समाप्त हुई।
श्रेणिप्ररूपणा दो प्रकारकी है- अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा। उनसे अनन्तरोपनिधाको कहते हैं। वह इस प्रकार है-पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण जीवगुणहानिशलाकाओंका त्रैराशिकक्रमसे समस्त योगस्थानकालमें भाग देनेपर एक गुणहानि आती है । उसका विरलन कर प्रत्येक एकपर जघन्य योगस्थानके जीवोंको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org