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५०२) छक्खडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, २०५. उवएसो त्ति कुदो णव्वदे ? पवाइज्जंतउवएसेण जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण एक्कारस समया । अण्णदरेण उवएसेण जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण पण्णारस समया त्ति पदेसबंधसुत्तादो त्ति । तेण णव्वदि' जहा उवरिमचदुसमइयजोगहाणेसु दो चेव वड्डीओ, संखेज्जगुणवड्डी णस्थि त्ति।
संपहि एदेणेव सुत्तेण सूचिदवड्ढिकालाणमप्पाबहुगं वुच्चदे । तं जहा- सव्वत्थोवो असंखेज्जभागवड्डि-हाणिकालो । संखेज्जभागवड्डि-हाणिकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? असंखेज्जभागवड्डि [-हाणि] विसयादो संखेज्जभागवड्डि-हाणिविसयस्स संखेज्जगुणत्तुवलंभादो त्ति । विसयगुणगाराणुसारी कालगुणगारो किण्ण वुत्तो ? ण, परियदृणभेदेण कालस्स असंखेज्जगुणत्तं पडि विरोहाभावादो । खेज्जगुणवड्डि. संखेज्जगुणहाणीण' कालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? संखेज्जभागवाड्ढ-हाणिविसयादो संखेज्जगुणवड्डि-हाणीणं विसयस्स संखेज्जगुणतुवलंभादो । असंखेज्जगुणवड्डि-हाणिकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? आवलियाए
शंका- यह परम्पराप्राप्त उपदेश है, यह कहांसे जाना जाता है ?
समाधान- परम्पराप्राप्त उपदेशके अनुसार जधन्यसे एक समय और उत्कर्षसे ग्यारह समय हैं। अन्यतर उपदेशके अनुसार जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पन्द्रह समय हैं, इस प्रदेशबन्धसूत्रसे वह जाना जाता है।
इसीसे जाना जाता है कि ऊपरके चार समय योग्य योगस्थानों में दो ही वृद्धियां होती हैं, संख्यातगुणवृद्धि नहीं होती। - अब इसी सूत्रसे सूचित वृद्धिकालोंके अल्पबहुत्वका कथन करते हैं। वह इस प्रकार है- असंख्यातभागवृद्धि और हानिका काल सबमें स्तोक है। उससे संख्यातभागवृद्धि और हानिका काल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार आवलीका असं. ख्यातवां भाग है, क्योंकि, असंख्यातभागवृद्धि व हानिके विषयसे संख्यातभागवृद्धि और हानिका विषय संख्यातगुणा पाया जाता है।
शंका-विषयगुणकारके समान कालके गुणकारको क्यों नहीं कहा ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, परिवर्तनके भेदसे कालके असंख्यातगुणे होने कोई विरोध नहीं है।
उससे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका काल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, संख्यातभागवृद्धि और हानिके विषयसे संख्यातगुणवृद्धि और हानिका विषय संख्यातगुणा पाया जाता है। उससे असंख्यातगुणवृद्धि और हानिका काल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुण
१ अप्रतौ ' णव्वदे ' इति पाठः। २ तापतौ 'विरोहाभावादो । संखेज्जगुणहाणीणं ' इति पाठः।
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