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________________ १९६1 छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, २००. - जवमज्झादो हेट्ठिमाणं सत्तसमइयादिजोगट्टाणाणं पुव्वं पमाणं परूविदं' । पुणो जवमज्झादो उवरिमाणं सत्त-छ-पंच-चदुसमइयंजोगट्ठाणाणं तेसिं चेव पमाणं परूवेमि त्ति जाणावण8 'पुणरवि' गहणं कदं । एदेहि पुव्वं परूविदजोगट्ठाणेहिंतो तिसमइय-बिसमइय जोगट्ठाणाणि उवरि होति त्ति जाणावणटुं उवरिसद्दणिद्देसों कदो । अधवा एसो उवरिसहो मज्झदीवओ। तेण सव्वत्थ सेडीए असंखेज्जदिमागमेत्तहेट्ठिमचदुसमइयजोगट्ठाणाणं उवरि पंचसमइयजोगट्ठाणाणि होति । तेसिं सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणमुवरि छसमइयाणि होति । तेसि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणमुवरि सत्तसमइयाणि । तेसिं सेडीए असंखेज्जदि. भागमेत्ताणमुवरि अट्ठसमइयाणि । तेसिं सेडीए असंखेज्जदिमागमेत्ताणमुवरि पुणरवि सत्तसमइयाणि । तेर्सि सेडीए असंखेज्जदिभागमेताणमुवरि छसमइयाणि । तेसिं सेडीए असंखेज्जदिभागमे ताणमुवरि पंचसमइयाणि । तेसिं सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणमुवरि चदुसमइयाणि । तेसिं सेडीए असंखेज्जदिमागमेत्ताणमुवरि तिसमइयाणि । तेसिं सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणमुवरि बिसमझ्याणि जोगट्ठाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि त्ति __ यवमध्यसे नीचेके सप्तसामयिक आदि योगस्थानोंका प्रमाण पूर्वमें कहा जा चुका है। अब यवमध्यसे ऊपरके जो सात, छह, पांच और चार समय निरन्तर प्रवर्तनेवाले योगस्थान हैं उनके ही प्रमाणकी प्ररूपणा करते हैं, इस बातके शापनार्थ सूत्रमें 'पुणरवि' पदका ग्रहण किया गया है। इन पूर्वप्ररूपित योगस्थानोंमेंसे तीन समय व दो समय निरन्तर प्रवर्तनेवाले योगस्थान ऊपर होते हैं, इस बातके शापनार्थ 'उवरि' शब्दका निर्देश किया है। अथवा, यह उवरि' शब्द मध्यदीपक है। इस कारण सर्वत्र श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र नीचे के चार समयवाले योगस्थानोंके ऊपर पांच समयवाले योगस्थान होते हैं। श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उन योगस्थानोंके ऊपर छह समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं। श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर सात समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं। श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर आठ समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं । श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उक्त योगस्थानोंके ऊपर फिरसे भी सात समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं । श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर छह समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं। श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर पांच समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं। श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर चार समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं । श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर तीन समय रहनेवाले योगस्थान होते हैं । श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र उनके ऊपर दो समय रहनेवाले योगस्थान आप्रतौ पुवं परूविदं पमाणं' इति पाठः। २ अ-आ-काप्रतिषु 'पंच-दुसमइय-' इति पाठः । ३ प्रतिषु 'पमाणाणं' इति पाठः। ४ अ-आ-काप्रतिषु ' उवरि सत्तणिद्देसो',ताप्रतौ 'उवरि' [सत] ति णिदेसो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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