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________________ ४, २, ४, १२२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त [ ३८१ याउअमप्पणो जहण्णदव्वप्पहुडि जावुक्कस्सदव्वेत्ति ताव परमाणुत्तरादिकमेण णिरंतर गंतूण उक्कस्सं जादं । ___संपहि जोग-बंधगद्धादि' अस्सिदूण तिरिक्खाउअदव्वं उक्कस्स कीरदे । तं जहा -- जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि जलचरेसु पुवकोडाउअं बंधिय कदलीघाद कादण उक्कस्सजोगुक्कस्सबंधगद्धाहि णिरयाउअं बंधिय ट्ठिदस्स भुंजमाणाउअम्मि परमाणुत्तरादिकमेण एगो विगलपक्खेवो वड्ढावेदव्यो । एवं वड्डिदूण ट्ठिदो च, अण्णेगो पक्खेवुत्तरजोगेण बंधिदृणागदो च, सरिसा । एवं जाणिदूण वड्ढावेदव्वं जाव जोगो तिरिक्खा उअं बंधगद्धा च उक्कस्सत्तं पत्ताओ ति। एवं दो वि आउआणि उक्कस्साणि जादाणि । एवमणतेहि वियपेहि आउअस्स अजहण्णपदपरूवणं कदं । ___ आउअस्स एवं वा अजहण्णपदपरूवणा कायव्वा। तं जहा- जाव णेरइयबिदियसमओ त्ति ताव पुव्वविधाणेण ओदारिय पुणो तम्हि चेव ठविय तीहि वड्डीहि बंधगद्धं वडाविय चदुहि वड्डीहि जोगं वड्डाविय णिरयाउअदव्वं पंचहि वड्डीहि उक्कस्सं कायव्वं । एवं वड्डिदूण द्विदबिदियसमयणेरइयो च, पढमणिसेगेणूण उक्कस्सदव्वं बंधिदागदपढम नारकायु अपने जघन्य द्रव्यको लेकर उत्कृष्ट द्रव्य तक एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे निरन्तर जाकर उत्कृष्ट हो जाता है। ___ अब योग व बन्धककाल आदिका आश्रय कर तिर्यंच आयुके द्रव्यको उत्कृष्ट करते हैं । वह इस प्रकारसे-जघन्य योग व जघन्य बन्धककालसे जलचरोमें पूर्वकोटि प्रमाण आयुको बांधकर कदलीघात करके उत्कृष्टं योग व उत्कृष्ट बन्धककालसे नारकायुको बांधकर स्थित जीवकी भुज्यमान आयुमें एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे एक विकल प्रक्षेप बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ, तथा दूसरा एक जीव प्रक्षेप अधिक योगसे आयुको बांधकर आया हुआ, दोनों सदृश हैं। इस प्रकार जानकर योग, तिर्यगायु व बन्धककालके उत्कृष्टताको प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार दोनों ही आय उत्कृष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार अनन्त विकल्पों द्वारा कर्मके अजघन्य पदकी प्ररूपणा की गई है। अथवा, आयु कर्मके अजघन्य पदकी प्ररूपणा इस प्रकार करना चाहिये । यथा-नारकके द्वितीय समय तक पूर्व विधानसे उतार कर और वहां ही स्थापित कर तीन वृद्धियोंसे बन्धककालको बढ़ाकर व चार वृद्धियोंसे योगको बढ़ाकर नारकायुके द्रव्यको पांच वृद्धियों द्वारा उत्कृष्ट करना चाहिये। इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ द्वितीय समयवर्ती नारकी, तथा प्रथम निषेकसे हीन उत्कृष्ट द्रव्यको बांधकर आया हुआ प्रथम समयवर्ती नारकी, दोनों सदृश हैं। अ-आ-काप्रति 'जोगं बंधगादि'इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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