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________________ ३७० ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १२२. पक्खेवो वऋदि । एवं वड्ढावेदव्वं जाव अट्ठागरिसाए दुचारमसमयप्पहडि सत्तागरिसाए चरिमसमओ त्ति एदासिं तिरिक्खगोबुच्छाणं जत्तिया सगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ता वड्डिदा त्ति। एवं वडिदण विदो च, अण्णगो जहण्णजो-जहण्णबंधगद्धाहि तिरिक्खाउअंबंधिय पुणो अहहि आगरिसाहि णिरयाउअं बंधमाणो तत्थ छसु आगरिसासु जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि चेव बंधिय पुणो सत्तमीए आगरिसाए समऊणजहण्णबंधगद्धाए जहण्णजोगेण बंधिय पुणो एगसमएण अट्ठमागरिसजहण्णबंधगद्धामेत्तसमयपबद्धाणं जत्तिया सगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ताणि जोगट्ठाणाणि उवरि चडिदूण बंधिय सत्तमाए आगरिसाए चरिमसमए ट्ठिदो च, सरिसा। अधवा अट्ठमागरिसदव्वमेवं वा वड्ढावेदव्वं- अट्ठमामरिसजहण्णगद्धाहियसत्तमागरिसजहण्णबंधगद्धाए जहण्णजोगेण च बंधाविय दोण्हं सरिसभावो वत्तव्यो। अट्ठमागरिसजहण्णबंधगद्धादो सत्तमागरिसाए जहण्णुक्कस्सबंधगद्धाणं विसेसो बहुओ त्ति कधं णव्वदे ? गुरूवदेसादो । पुणो तं मोतूण पुबविहाणेण वड्ढावेदव्वं सत्तमाए आगरिसाए दुचरिमगोवुच्छप्पहुडि जाव छट्ठागरिसाए चरिमसमयगोवुच्छा त्ति। एवं वड्डिदूण विदो च, अण्णेगो अट्ठहि आगरिसाहि आउअं बंधमाणो तत्थ पंचसु आगरिसासु जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि अपकर्षके द्विचरम समयसे लेकर सातवें अपकर्षके चरम समय तक इन तिर्यंच गोपुच्छोंके जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र बढ़ जाने तक बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ; तथा दूसरा एक जघन्य योग और जघन्य बन्धककालसे तिर्येच आयुको बांधकर, फिर आठ अपकर्षों द्वारा नारक आयुको बांधता हुआ उनमेंसे छह अपकर्षो में जघन्य योग और जघन्य बन्धककालसे ही आयुको बांधकर, फिर सातवें अपकर्षमें एक समय कम जघन्य बन्धककाल और जघन्य योगसे बांधकर, फिर एक समय में आठवे अपकर्षके जघन्य बन्धककाल मात्र समयप्रबद्धोंके जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र योगस्थान ऊपर चढ़कर आयुको बांध सातवें अपकर्षके अन्तिम समयमें स्थित हुआ; ये दोनों सदृश है। अथवा, आठवे अपकर्षके द्रव्यको इस प्रकार बढ़ाना चाहिये-आठवें अपकर्षके जघन्य बन्धककालसे अधिक सातवें अपकर्षके जघन्य बन्धककालसे और जघन्य योगसे आयुको बंधाकर दोनोंके सादृश्यको कहना चाहिये । शंका-आठवें अपकर्षके जघन्य बन्धककालसे सातवे अपकर्षके जघन्य व उत्कृष्ट बन्धककालोका विशेष बहुत है, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-यह गुरुके उपदेशसे जाना जाता है। फिर उसको छोड़कर पूर्वोक्त विधिसे सातवें अपकर्षके द्विचरम गोपुच्छसे लेकर छठे अपकर्षके अन्तिम गोपच्छतक बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़कर स्थित आ: तथा दूसरा एक जीव आठ अपकर्षों द्वारा आयुको बांधता हुआ उनमेंसे पांच अपकर्षों में जघन्य १ ताप्रती 'ति । एदासि' इति पाठः। २ प्रतिषु 'बंधमाणे ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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