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४, २, ४, १२२. ]
यणमहाहियारे वेयणदव्यविहाणे सामित्तं
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दूणागदो च, सरिसा । एदेण कमेण दिवड्डुगुणहाणिमेत्तविगलप+खेवेसु वडिदेसु रूवूणदिवगुणहाणिमेत्ता सगलपक्खेवा पविसंति । एवं वड्डिण द्विदविदियसमयणेरइओ च अणेगो एगसमएण रूवूणदिवड्ढगुणहाणिमत्त जोगट्ठाणाणं चरिमजोगट्ठाणेण बंधिदूणागदपढमसमयणेरइओ च, सरिसा । एवं बिदियसमयणेरइयस्स परमाणुत्तरादिकमेण निरंतर
णि हवंति । पढमसमयणेरइयस्स पुणो पक्खेवोत्तरकमेण सांतरद्वाणाणि हवंति । एदेण कमेण वढावेदव्वं जात्र तिरिक्खचरिमगोवुच्छपमाणं वडिदे ति । एवं वड्डिण ट्ठिदो च, अण्गो जीवो जहणजे ग-जहण्णबंध गद्धाहि णिरयाउअं बंधिय जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि बद्धेतिरिक्खचरिमसमयगोवुच्छं धरिय तिरिक्खचरिमसमए द्विदो च, सरिसा ।
संपहि तिरिक्खचरिमगोवुच्छाए सयलपक्खेवाणं जोगट्ठाणद्धाणस्स च गवसणा कीरदे - तत्थ ताव सयलपक्खेवाणुगमं कस्सामा । तं जहा - तप्पाओग्गघोलमाणजद्दण्गजोगपक्व भागद्दारं तिरिक्खाउअजण्णबंध गद्धाए गुणिदं विरलेदूग जहण्णचंचगद्धांमेत्तसमयपत्रद्धेसु समखंडं करिय दिण्णेसु एक्केक्कस्स रूवस्स एगेगो सयलपक्खेवा पावदि ।
हुआ नारकी, दोनों सदृश हैं। इस क्रमसे डेढ़ गुणहानि मात्र विकल प्रक्षेपों के बढ़ने पर एक अंक से कम डेढ़ गुणहानि मात्र सकल प्रक्षेप प्रविष्ट होते हैं । इस प्रकार बढ़कर स्थित द्वितीय समयवर्ती नारकी, तथा एक दूसरा एक सम्यमें रूप कम डेढ़ गुणहानि मात्र योगस्थानोंमें अन्तिम योगस्थान से आयुको बांधकर आया हुआ प्रथम समयवर्ती नारकी, दोनों सदृश हैं। इस प्रकार द्वितीय समयवर्ती मारकी एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे निरन्तर स्थान होते हैं । किन्तु प्रथम समयवर्ती नारकीके प्रक्षेप अधिक क्रमसे सान्तर स्थान होते हैं । इस क्रमसे तिर्यचकी अन्तिम गोपुच्छ प्रमाण वृद्धि हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ, तथा दूसरा एक जीव जघन्य योग और जघन्य बन्धककालसे नारकायुको बांधकर जघन्य योग और जघन्य बन्धककाल से बांधी हुई तिर्यचकी अन्तिम समय सम्बन्धी गोपुच्छाको धारण कर तिर्यच भवके अन्तिम समय में स्थित हुआ, दोनों सहरा है ।
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अब तिर्यचकी अन्तिम गोपुच्छा सम्बन्धी सकल प्रक्षेत्रों और योगस्थानाध्वानकी गवेषणा करते हैं— उसमें पहिले सक्कल प्रक्षेपानुगमको करते हैं। वह इस प्रकार हैतत्प्रायोग्य घोलमान जीवके जघन्य योग सम्बन्धी प्रक्षेपके भागहारको तिर्यच आयुके बन्धककाल से गुणित करके विरलित कर जघन्य बन्धककाळ प्रमाण समयप्रबचको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक सकल प्रक्षेप
जघन्य
१ अ आ-काप्रतिषु 'गंध' इति पाठः ।
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