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१, २, ४, ७६.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त [२९९ उत्तणिल्लेवणहाणाणि णाणावरणस्स कधं वोत्तुं सक्किज्जते ? ण, विरोहाभावादो।)
तवदिरित्तमजहण्णा ॥ ७६ ॥
संपधि अजहण्णदव्वपरूवणे कीरमाणे चउव्विहा परूवणा होदि । तं जहाखविदकम्मंसियस्स कालपरिहाणीए एगा', गुणिदकम्मंसियस्स कालपरिहाणीए' बिदिया, खविदकम्मंसियस्स संतदो तदिया, गुणिदकम्मंसियस्स संतदो चउत्थो त्ति । तत्थ ताव पुवकोडिसमयाणं सेडिआगारेण रचणं कादण खविदकम्मसियस्स कालपरिहाणीए अजहण्णदवपमाणपरूवणं कस्सामा । तं जहा - पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणियं कम्मविदि सुहुमणिगोदेसु खविदकम्मसियलक्खणेण अच्छिय तदो हिस्सरिदण तसकाइएस उप्पज्जिय पुणो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि संजमासजमंकडयाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि सम्मत्तकंडयाणि पलिदोबमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि अणताणुबंधिविसंजोजणकंडयाणि च अट्ट संजमकंडयाणि चदुक्खुत्तो कसायउवसामणं च समयाविरोहेण कादूण बादरपुढविकाइयपज्जत्तएसु उववन्जिय मणुसेसु उववण्णो । तदो सत्तमासाहियअहि वासेहि तिण्णि वि करणाणि कादूण सम्मतं संजमं च जुगवं पडि
समाधान- महीं, क्योंकि, इसमें कोई विरोध नहीं है। द्रव्यकी अपेक्षा जघन्यसे भिन्न ज्ञानावरणकी वेदना अजघन्य है ॥ ७६ ॥
अच अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा करते समय चार प्रकारकी प्ररूपणा है। यथा-क्षपितकर्माशिकके कालपरिहानिकी अपेक्षा एक, गुणितकौशिकके कालपरिहानिकी अपेक्षा द्वितीय, क्षपितकर्माशिकके सत्त्वकी अपेक्षा तृतीय और गुणितकमाशिकके सत्यकी अपेक्षा चतुर्थ । उनमेंसे पहिले पूर्वकोटिके समयोंकी श्रेणि रूपसे रचना करके क्षपितकशिकके कालपरिहानिकी दृष्टि से अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा करते हैं । यथा-पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन कर्मस्थिति प्रमाण काल तक सूक्ष्म निगोद जीवों में क्षपितकर्माशिक स्वरूपसे रहकर फिर यहांले निकलकर प्रसकायिकों में उत्पन्न होकर पश्चात् पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र संयमासंयमकाण्डकोको, पल्यापमके असंख्यातवें भाग मात्र सम्यक्त्वकाण्डकोको, पल्योपम्के असंख्यातवें भाग मात्र अनन्तानुबन्धिविसंयोजनकाण्डकोको, आठ संयमकाण्डकोको तथा चार वार कषायोपशामनाको समयमें कही गई विधिक अनुसार करके बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो पुनः मनुष्यों में उत्पन्न हुभा । पश्चात् सात मास अधिक आठ वर्षों में तीनों ही करणे को करके उनके द्वारा सम्यक्त्व व संयमको एक साथ प्राप्त कर फिर कुछ कम पूर्वकोटि काल तक
, प्रतिषु 'कालपरिहाणी एगा' इति पाठ। २ आप्रतौ 'परिहाणीण', तापतौ 'परिहाणी' इति पाठः । ३ अ-आप्रत्योः संजोयण-' इति पाठः। ४ अ-आ-काप्रतिषु सम्मत्त संजम' इति पाठः।
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