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________________ ४, २, ४, ३२. ] यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [ १८५ पढमादिगुणहाणीणं चडिदद्धाणुप्पायणविहाणं उच्चदे - दुगुणिदरूवेहि ओवट्टिदगुणहाणिमूलेण गुणहाणिम्हि भागे हिदाए लद्धं रूवाहियं चडिदद्धाणं होदि । चरिमगुणहाणिगोवुच्छविसेसेहिंतो समुष्पज्जमाणाणं रूवाणं [ दुगुणिदपक्खेवरूवेहिंतो गुणहाणिमावट्टिदे लद्धवग्गमूलं घेत्तूण गुणहाणिम्हि भागे हिदे लद्धं रूवाहियं चडिदद्वाणं होदि । ] दुचरिमगुणहाणिगोवुच्छविसेसेर्हितो समुप्पज्जमाणरूवाणं दुगुणिदपक्खेव रूवेहि गुणहाणिमावट्टिय लद्धं दुगुणिय वग्गमूलं घेत्तूण तेण गुणहाणिम्हि भागे हिदे लद्धं रूवाहियं चडिदद्धाणं होदि । तिचरिमगुणहाणिगोवुच्छविसेसेहिंतो समुप्पज्जमाणरूवाणं दुगुणिदपक्खेवरूवेद्दि गुणहाणिमोवट्टिय लद्धं चदुहि गुणिय वग्गमूलं घेत्तूण तेण पुणो गुणहाणिमोवट्टिय रूवे पक्खित्ते चडिदद्धाणं होदि । चदुचरिमगुणहाणिगोवुच्छविसेसेहिंतो समुप्पज्जमाणरूवाणं [दु-] गुणिक्खेवरूहि गुणहाणिमोवट्टिय लद्धमट्ठहि गुणिय वग्गमूलं घेत्तूण तेण गुणहाणि यहां पहिले प्रथमादिक गुणहानियोंके गये हुए अध्वानके लानेकी विधि बतलाते हैं- दुगुणे अंकोंसे अपवर्तित गुणहानिके वर्गमूलका गुणहानिमें भाग देने पर जो लब्ध हो उसमें एक अंकके मिलानेपर गया हुआ अध्वान होता है । चरम गुणहानि गोपुच्छविशेषों से उत्पन्न होनेवाले अंकोंके [ दुगुणे प्रक्षेप अंकोंसे गुणहानिको अपवर्तित करने पर जो लब्ध हो उसके वर्गमूलको ग्रहण करके उसका गुणहानिमें भाग देने पर जो प्राप्त हो उसमें एक अंकके मिलानेपर गया हुआ अध्वान होता है । चरम गुणहानिमें गोपुच्छविशेष १; इसका दुगुना १२ = २ गुणहानि ८ ८÷२ =४; ४४ = २; ८ ÷ २ = ४, ४ + १ = ५ अध्वान ] । द्विचरम गुणहानिके गोपुच्छविशेषोंसे उत्पन्न होनेवाले अंकोंके दुगुणे प्रक्षेप अंकों से गुणहानिको अपवर्तित कर लब्धको दुगुणा करके वर्गमूल ग्रहण कर उसका गुणहानि में भाग देने पर जो लब्ध हो उसमें एक अंकके मिलानेपर गया हुआ अध्वान होता है [ द्वि. च. गुणहानि गो. वि. २१ २x२ = ४, ८ ÷ ४ = २; २ × २ = ४, V४ = २; ८ : २ = ४; ४ + १ = ५ अध्वान ] | त्रिचरण गुणहानिके गोपुच्छविशेषोंसे उत्पन्न होनेवाले अंकोंके दुगुणे प्रक्षेप अंकों से गुणहानिको अपवर्तित करके लब्धको चारसे गुणित कर वर्गमूल ग्रहण करके उससे पुनः गुणहानिको अपवर्तित कर लब्धमें एक अंकके मिलानेपर गया हुआ अध्वान होता है [ ४ x २ = ८; ८÷८ = १, १x४ = ४ ४ + १ = ५ अध्वान ] | चतुश्वरम गुणहानिके गोपुच्छविशेषों से दुगुणे प्रक्षेप अंकोंसे गुणहानिको अपवर्तित कर लब्धको वर्गमूलको ग्रहण कर उससे गुणहानिको अपवर्तित करके छ. वे. २४. Jain Education International For Private & Personal Use Only ४ = २; ८ ÷ २ = ४, उत्पन्न होनेवाले अंकों के आठसे गुणित करके लब्धमें एक अंकके www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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