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________________ ४, २, ४, ३२.] वैयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त ( १८१ ९२७११६३. पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धमुवरिमविरलगाए अवणिदे इच्छिद१५२ ३१ भागहारो होदि १५७५ । एदेण समयपबद्धे भागे हिदे चरिमदुचरिमणिसेगेहि सह बिदियादि- ९२७ । गुणहाणिदव्वमागच्छदि । एवं जाणिदण उवरि णेदव्वं । णवरि चरिमगुणहाणितदियसमयपबद्धदव्वभागहारो | ३१५ । चउत्थसमयपबद्धदव्यभागहारो | १५७५|| पंचमसमयपबद्धदव्वभागहारो ३ ५। २०३ चरिमगुणहाणिछट्ठसमयपबद्ध ११११ दवभागहारो १५७५ । २४३ सत्तमसमयपबद्धदव्वभागहारो १५७५ । कम्मविदिचरिमसमए बद्धदव्व- १३२७ भागहारो एगरूवं, तत्थ बद्धदव्वस्स एग-१४४७ परमाणुस्स वि खयाभावाद।। . अधवा, भागहारपरूवणमेव वा वत्तव्वं तं जहा- करमद्विदिपढमगुणहाणिसंचयस्स भागहारपरूवणं पुव्वं व काऊण पुणो समयाहियगुणहाणिमुवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारोवणरूवाणि दुरूवाहियदिवड्डगुणहाणीयो । तं जहा- चरिमगुणहाणिवे चरिम फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर लब्धको उपरिम विरलनमेसे घटा देने पर इच्छित भागहार होता है- [१५५ + १ = १३५, ६३ x १४ २५७ = २४५७०५७, ६३ - रंट =] 'ए ' । इसका समयबद्धमें भाग देमपर चरम और द्विचरम निषेकोके साथ द्वितीयादिक गुणहानियोंका द्रव्य आता है - [६३०० : ५३७५ = ३७०८ = (३१०० + २८८ + ३२०)] । इसी प्रकार आगे भी जानकर ले जाना चाहिये । विशेष इतना है कि अन्तिम गुणहानिके तृतीय समयमें बांधे गये द्रव्यका भागहार ३३५, चतुर्थ समयमें बांधे गये द्रव्य का भागहार , पांचवे समय में बांधे गये द्रव्यका भागहार ३४७, अन्तिम गुणहानिके छठे समयमें बांधे गये द्रव्यका भागहार ५५५, और सातवें समयमें बांधे । भागहार १४४७ है। कमेस्थितिक अन्तिम समयमें बांधे गये द्रव्यका भागहार एक अंक है, क्योंकि, उस समयमें बांधे गये द्रव्यमें एक परमाणुका भी क्षय नहीं हुआ है। अथवा, भागहारकी प्ररूपणा इस प्रकारसे कहना चाहिये। यथा-कर्मस्थितिकी प्रथम गुणहानिके संचय सम्बन्धी भागहारकी प्ररूपणा पहिलेके ही समान करके पश्चात् एक समय अधिक गुणहानि प्रमाण आगे जाकर वांधे गये द्रव्य सम्बन्धी भागहारके अपवर्तन अंक दो अंकोंसे अधिक डेढ़ गुणहानि मात्र हैं। यथा- अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको अन्तिम निषेकके प्रमाणसे करनेपर डेढ़ गुणहानि प्रमाण अन्तिम १ प्रतिषु (१५७५॥ इति पाठः । २ का-ताप्रयोः 'पंच' इति पाठः । ३ ताप्रती 'पुव्वं काऊण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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