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________________ १९०] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, ३२. लम्भदि तो उवरिमविरलणमेत्ताणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवटिदाए एगरूवस्स दुभागो' एगरूवासंखेज्जदिभागेण ऊणो आगच्छदि । तं पलिदोवमवग्गसलागाणं वेत्तिभागे पक्खिविय गुणहाणिम्हि ओवट्टिदे चडिदद्धाणं होदि । पुणो एत्थ पक्खेवरूवाणि दादूण चरिमणिसेगभागहारे ओवट्टिदे पलिदोवममागच्छदि त्ति सिद्धं । अधवा वग्गसलागाणं बेत्तिभागाणं उवरि सादिरेगं एवं वा आणेदव्वं । तं जहाओवट्टणरूवेहि गुणहाणिम्हि ओवट्टिदे वग्गसलागाणं बेत्तिभागो आगच्छदि । तं विरलेदूण गुणहाणिं समखंडं कादण दिण्णे सूवं पडि ओवट्टणरूवपमाणं पावदि । पुणो एत्थ रूवाहियपक्खवरूवाणं अवणयणं कस्सामो । तं जहा- रूवाहियपक्खेवरूवेहि एगरूवधरिदं भागं घेत्तूण लद्धं हेट्ठा' विरलेदूण उवरिमएगरूवधरिदं समखंडं कादूण दिण्णे रूवं पडि रूवाहियपक्खेवरूवाणि पावंति । एदाणि उअरिमरूवधरिदेसु अवणिदे अवणिदसेसं लद्धपमाणं होदि । अवणिदरूवाहियपक्खेवरूवाणि लद्धपमाणेण कीरमाणे रूवूणहेट्टिमविरलणमेत्ताणं जदि एगपक्खेवसलागा लब्भदि तो ओवट्टीणेरूवोवट्टिदगुणहाणिमेत्तुवीरमविरलणम्हि किं लमामो ति हेट्ठिमविरलणं रूवूर्ण कीरमाणे छेदमेत अवणेदव्व । शलाका प्राप्त होती है तो उपरिम विरलन मात्र द्रव्यमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर एक रूपके असंख्यातवें भागसे हीन एक रूपका द्वितीय भाग आता है। उसको पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके दो त्रिभागोमें मिलाकर उस से गुण हानिको अपवर्तित करनेपर आगेका विवक्षित अध्वान होता है । फिर इसमें प्रक्षेप रूपोंको देकर अन्तिम निषेकभागहारको अपवर्तित करनेपर पल्योपम आता है, ऐसा सिद्ध होता है। अथवा [पल्योपमकी] वर्गशलाकाओंके दो विभागों के ऊपर साधिक इस प्रकार लाना चाहिये । यथा- अपवर्तन रूपोका गुणहानिमें भाग देनेपर वर्गशलाकाओंका दो त्रिभाग आता है। उसका विरलन करके गुणहानिको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति अपवर्तन रूपोंका प्रमाण प्राप्त होता है। अब यहां एक अधिक प्रक्षेप रूपोंका अपनयन करते हैं। यथा- एक रूपसे अधिक प्रक्षेप रूपोंका एक विरलनके प्रति प्राप्त द्रव्यमें भाग देकर जो लब्ध हो उसका नीचे विरलन करके उपरिम एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देने पर प्रत्येक एकके प्रति रूपाधिक प्रक्षेप रूप प्राप्त होते हैं। इनको उपरिम विरलनअंकके प्रति प्राप्त द्रव्यमेंसे कम करनेपर जो शेष रहे वह लब्धका प्रमाण होता है । कम किये गये एक अधिक प्रक्षेप रूपोंको लब्धके प्रमाणसे करने पर एक कम अधस्तन विरलन मात्र अंकोंकी यदि एक प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है तो अपवर्तन रूपोसे अपवर्तित गुणहानि मात्र उपरिम विरलन राशि क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार अधस्तन विरलनमसे एक कम करत हुए छद मात्र कम परलन अंकके प्रतिर जा लब्ध हो जायक प्रक्षेप रूपोंका , ताप्रती · ओवट्टिदाए एगरूवस्स दुभागो' इत्ययं पाठस्त्रुटितः । २ अ-काप्रयोः ओवट्टीण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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