________________
४, २, ४, ३२. वैयणमहाहियारे वैयणदव्यावहाणे सामित्त (१५७ वग्गमूलेण गुणहाणिम्मि भागे हिदे भागहारादो दसगुणमागच्छति | ४० ।। सेसं पुव्वं व वत्तव्यं ।
छरूवेसु उप्पाइज्जमाणेसु गुणहाणिपमाणं | १९२। । बारसमभागो | १६ || एदस्स वग्गमूलेण [गुणहाणिम्मि] भागे हिदे भागहारादो बारसगुणमागच्छदि |३८ । सेसं पुत्वं व वत्तव्वं ।
सत्तरूवेसु उप्पाइज्जमाणेसु गुणहाणिपमाणं ।२२४ । गुणहाणिचाइसमभागो | १६ । एदस्स वग्गमूलेण गुणहाणिग्मि' भागे हिंदे भागहारादो चोद्दसगुणमागच्छदि । रूवाहियमेदं चीडदद्धाणं होदि । ५७ । सेसं जाणिय वत्तव्वं ।।
अट्ठरूवपक्खेवे इच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणं २५६ । सोलसमभागो । १६ ।। एदस्स वग्गमूलेण गुणहाणिम्हि भागे हिदे भागहारादो सोलसगुणमागच्छदि । एदं रूवाहियं चडिदद्धाणं होदि । सेसं जाणिय वत्तव्वं ।
२६ है । इसके वर्गमूलका गुणहानिमें भाग देनेपर भागहारका दसगुना आता है ४० । शेष कथन पहले के समान करना चाहिये । [१६० : १० = १६, १६ = ४, १६०:४= ४० = ४४ ९०,४० + १ = ४१ स्थान; (९x४१)+ (२०४४०) = ११६९, ९ से ४९ तक अंकोंका जोड़ १९८९, ११८९ - ११६९ = २० शेष गो. वि । ४१+५= ४६ अपवर्तन अंक । करणिगत गच्छ - ३६१.१।]
छह अंकोंको उत्पन्न कराते समय गुणहानिका प्रमाण १९२ है। बारहवां भाग १६ है । इसके वर्गमूल का [गुणहानिमें ] भाग देनेपर भागहारसे बारहगुणा ४८ आता है। शेष कथन पहलेके ही समान करना चाहिये । [ १९२ १२ = १६, १६ = ४, १९२-:--४८= १२४४,४८+१=४९ स्थान: (९x४९) + (२४-४८)-१५९३६ ९ से ५७ तक अंकोंका जोड़ ६१७, १६१७ - १५९३ = २४ शेष गो. वि. । ४९ + ६ = ५५ अपवर्तन अंक । करणिगत गच्छ ५४३३. १।
सात रूपोंके उत्पन्न कराते समय गुणहानिका प्रमाण २३४ और गुणहानिका चौदहवां भाग १६ है । इसके वर्गमूल का गुणहानिमें भाग देनेपर भागहारसे चौदहगुणा आता है (२२४ : ४ = ५६)। यह एक अधिक आगेका स्थान होता है। (५६+ १ = ५७)। शेष जानकर कहना चाहिये।
आठ अंकोंके प्रक्षेपकी इच्छा करनेपर गुणहानिका प्रमाण २५६ और इसका सोलहवां भाग १६ है। इसके वर्गमूलका गुणहानिमें भाग देनेपर भागहारसे सोलहगुणा आता है। इसमें एक मिलानेपर आगेका स्थान होता है। शेष जानकर कहना चाहिये।
प्रतिषु ' गुणे चोइसम'; तापतौ [गुणे ] चौइसम' इति पाठ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org