SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ ] छक्खंडागमे बेयणाखंड [ ४, २, ४, ३२. फाडिय सेसधणद्धरुवं पक्खिविय अद्धिए एदं | १४५ | १ | | एदेहि दोहि वि पुध पुध १६/४ पडिरासिय गच्छं दुगुणिदे एत्तियं होदि दिसादिरासीणं धण- रिणाणमवणयणं काऊण मूलं घेत्तूण रिणट्ठमभागमवणिय अट्ठहि भागे हिदे दोचरिमणिसेगा आगच्छंति | १८ | 1 तिसु पक्खेवरूवेसु उप्पाइज्जमाणसु गुणहाणिपमाणं छण्णउदी | ९६ | । एदस्स छब्भागो | १६ | | छब्भागमूलं | ४ || एदेण अणवद्विदभागहारेण गुणहाणिम्हि भागे हिदे भागहारादो गुणमा गच्छदि । पुणो एदं रूवाहियमुवरि चडिदूण बंधमाणस्स ओवट्टण - रुवाणं प्रमाणं तिरूवाहियचडिदद्वाणं होदि । कुदो ? संकलणखेत्तं ठविय मज्झम्हि फाडिय समकरणे कदे भागहारादो तिगुणविक्खंभ- छग्गुणायाम खेत्तुप्पत्तिदंसणादो । एदस्स खेत्तस्स गच्छ में मिलाकर आधा करनेपर इतना होता है १६ ४ १४५ + । फिर इन दोनों ही राशियों से अलग अलग दुप्रतिराशि रूपसे स्थित गच्छको गुणित करनेपर इतना होता है १४५ + - 2 | यहां वाम और दक्षिण दिशा में ६४ १४५ २१०२५ ६४ ६४ ८ स्थित धन और ऋण राशियोंका अपनयन करनेके पश्चात् वर्गमूल ग्रहण कर ऋण रूप एक बटे आठको घटा कर आठका भाग देनेपर दो अन्तिम निषेक आते हैं १८ । १४४ [J २१०२५ ६४ १ १४५ ८ ८ १४४ ÷ ८ = १८; यह दो प्रतिम निषेक प्रमाण गोपुच्छविशेषका संकलन है । अर्थात् कर्मस्थितिके प्रथम समय से लेकर + स्थान आगे जानेपर गोपुच्छविशेष दो अन्तिम निषेक प्रमाण १४५ २ - १ अप्रतौ | २१०२५ ૪ Jain Education International + १४५ ६४ -- + + + । एत्थ वाम-दाहिण २१०२५ १४५ १४५ १ ६४ ६४ ६४ - 1⁄2 होते हैं ] | तीन प्रक्षेप अंकों को उत्पन्न कराते समय गुणहानिका प्रमाण छयानबे ९६ है । इसका छठा भाग १६ है । छठे भागका वर्गमूल ४ है । यह अनवस्थित भागहार है । इससे गुणहानिके भाजित करनेपर भागहारसे छहगुना आता है । फिर इससे एक अधिक स्थान आगे जाकर बांधनेवाले के अपवर्तन रूप अंकोंका प्रमाण तीन अंक अधिक जितने स्थान आगे गये हों उतना होता है, क्योंकि, संकलनक्षेत्रको स्थापित करके और बीचसे फाड़कर समीकरण करनेपर भागहारसे तिगुने विस्तारवाले और छहगुने आयामवाले क्षेत्रकी उत्पत्ति देखी जाती है । फिर इस क्षेत्रके विस्तारको + ८ = एवंविधात्र संदृष्टेः । २ मप्रतिमाश्रित्य कृतसंशोधने ' समकरणी कदे इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy