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________________ १३४ ] छक्खंडागमे वैयणाखंड [ ४, २, ४, ३२. संपधि पढमगुणहाणिदव्वे पढमणिसेय मागेण कीरमाणे गुणहाणितिणिचदुब्भागमेषपदमभिसी परमामा क || बिदियागुणहाणिदव्वं काम पि पढमणिसेयपमाणेण कदे एत्तियं चेव होदि | ६ पक्खित्तचरिमगुणहाणिदव्वत्तादो । पुणो " ' दो वि तिणिचदुब्भागेसु मेलाविदेसु दिवड गुणहाणिमत्त पढमणिसेया होंति ५१२/१२ ; दो वि चदुब्भागम्मि मेलाविदे पढमणिसयस्स अर्द्ध होदि १२१६|| एदं तत्य पक्खित्ते प एत्तियं होदि | ५१२ १२ १ 1 २ संपधि चरिमगुणहाणिणिसेगेसु सव्वत्थ चरिमणिसेगे अवणिद गुणहाणिमेत्ता चरिमणिसेगा लब्भंति | ९ || पुणो रूवूणगुणहाणिसंकलणमेत्ता गोवुच्छविसेसा अहिया अस्थि । ते वि चरिमणिसेयपमाणेण कस्सामा । तं जहा - एगं गोवुच्छविसेसं घेतून रूवूणगुणहाणिमत्तगच्छविसेसेसु पक्खित्तेसु गुणहाणिमेत्तगोबुच्छविसेसा होंति । एवं सन्धेसि मूलग्ग ४ अब प्रथम गुणहानिके द्रव्यको प्रथम निषेक के प्रमाणसे करनेपर गुणहानिके तीन चतुर्थ भाग (८ x ३ = ६ ) मात्र प्रथम निषेक और प्रथम निषेकका चतुर्थ भाग ( ५१२ = १२८) प्राप्त होता है । उसकी संदृष्टि ६४ है। द्वितीबादि गुणद्दानियाँके द्रव्यको भी प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर इतना ही होता है - ६, क्योंकि, इसमें अन्तिम गुणहानिका द्रव्य मिलाया गया है । पुनः दोनों ही तीन-चतुर्थ भागोंको मिलानेपर डेढ़ गुणहानि मात्र प्रथम निरेक होते हैं - ५१२ × १२, और दोनों ही चतुर्थ भागोंको मिलानेपर प्रथम निषेकका अर्ध भाग होता है - ५१२ × ३ । इस अर्थ भागको डेढ़ गुणहानि मात्र प्रथम निषेकों में मिलानेपर इतना होता है- ५१२ x २५ । २ अब अन्तिम गुणहानिके निषेकों में से सर्वत्र अन्तिम निषेकको कम करनेपर गुणहानि मात्र अन्तिम निषेक प्राप्त होते हैं - ९x८ । पुनः एक कम गुणहानिके संकलन मात्र [८ - १ = ७, इसका संकलन २८ ] गोपुच्छविशेष अधिक हैं । उनको भी अन्तिम निषेकके प्रमाणसे करते हैं। यथा- एक गोपुच्छविशेषको ग्रहण कर उसमें एक कम गुणहानि मात्र गोपुच्छविशेषों को मिलाने पर गुणहानि मात्र गोपुच्छविशेष होते हैं । इस प्रकार सबका मूल और अग्रको जोड़ कर समीकरण करना चाहिये । इस ७ + १ × ७ २ १ अप्रतौ ' कीरमाणे ग्रतिष्णि ' आ-काप्रत्योः ' कीरमाणे गूणतिण्णा ' इति पाठः २ अप्रतौ ' पुणो वि दो वि ' इति पाठः । ३ प्रतिषु ' एवं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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