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१२.०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४ ३२. हिदित्तादो । एगरूवधरिदस्स संखेज्जदिभागो आउअस्स णाणागुणहाणिसलागाओ । चदुरूवधरिददव्वसमासो चदुकसायणाणागुणहाणिसलागाओ होति । कारणं सुगमं । एवं पलिदोवमहिदीणं णाणागुणहाणिसलागाओ तेरासियकमेण उप्पादेदव्वाओ।
णाणावरणीयस्स अण्णोण्णब्मत्थरासीदो दिवड्डगुणहाणीओ असंखेजगुणाओ ति [एदम्हादो, उवरि ] परूविदपदेसविरइयअप्पाबहुगादो च णव्वदे जहा णाणावरणीयणाणागुणहाणिसलागाओ पलिदोवमबिदियवग्गमूलद्धछेदणएहिंतो विसेसाहियाओ त्ति । तं जहासव्वत्थोवो चरिमणिसेगी। पढमाणसेगो असंखेज्जगुणो । चरिमगुणहाणिदव्वमसंखेज्जगुणमिदि । एवं पदेसविरइयअप्पाबहुगं । एदाहि णाणागुणहाणिसलागाहि सग-सगकम्मट्ठिदिमोवट्टिदे गुणहाणिपमाण सव्वकम्मेसु संखाए उवगदसमभावमुप्पज्जदे।
सव्वत्थोवाओ आउअस्स णाणागुणहाणिसलागाओ । णामा-गोदाणं संखेज्जगुणाओ । णाण-दसणावरणीय-अंतराइयाणं गुणहाणिसलागाओ विसेसाहियाओ । मोहणीयगुणहाणि
सागरोपम प्रमाण है। एक अंकके प्रति प्राप्त राशिके संख्यातवें भाग प्रमाण आयु कर्मकी नानागुणहानिशलाकायें हैं। चार अंकोंके प्रति प्राप्त राशिका जितना योग हो उतनी चार कषायोंकी नानागुणहानिशलाकायें होती हैं। इसका कारण सुगम है। इसी प्रकार पल्योगम मात्र स्थितिवाले कर्मोंकी नानागुणहानिशलाकाओंको त्रैराशिक क्रमसे उत्पन्न कराना चाहिये।
झानावरणीयकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे डेढ़ गुणहानियां असंख्यातगुणी हैं, इसखे और आगे कहे गये प्रदेशविरचित अल्पबहुत्वसे जाना जाता है कि ज्ञानावरणीयकी नानागुणहानिशलाकायें पल्योपमके द्वितीय वर्गमूलके अर्धच्छेदोंसे विशेष अधिक हैं। यथा- "अन्तिम निषेक सबसे स्तोक है। उससे प्रथम निषेक असंख्यातगुणा है । उससे अन्तिम गुणहानिका द्रव्य असंख्यातगुणा है ।" यह प्रदेशविरचित अल्पबहुत्व है।
इन नानागुणहानिशलाकाओंसे अपने अपने कर्मकी स्थितिको अपवर्तित करने पर सब कर्मों में संख्यासे समभावको प्राप्त गुणहानिका प्रमाण अर्थात् गुणहानिके कालका प्रमाण उत्पन्न होता है।
आयुकर्मकी नानागुणहानिशलाकायें सबसे स्तोक हैं। उनसे नाम व गोत्र कर्मकी नानागुणहानिशलाकायें संख्यातगुणी हैं। उनसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय व अन्तरायकी गुणहानिशलाकायें विशेष अधिक हैं। उनसे मोहनीयकी गुणहानिशलाकायें संख्यातगुणी हैं।
प्रतिषु ति य परूविद-इति पाठः।
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