________________
विषय-सूची
३२
क्रम विषय पृष्ठ | क्रम
विषय धवलाकारका मंगलाचरण
उत्कृष्ट ज्ञानावरणवेदना ३१-२२४ वेदना अधिकारके अन्तर्गत
बादर प्रथिवीकायिक जीवोमें १६ अनुयोगद्वारोंका निर्देश
अवस्थान १ वेदनानिक्षेप
७ उनमें परिभ्रमण करते हुए
पर्याप्त भवोंकी अधिकता १ नामवेदना आदि चार प्रकारकी वेदनाका स्वरूप व उसके
और अपर्याप्त भवोंकी अल्पउत्तरभेद
ताका निर्देश
८ वहांपर पर्याप्त कालकी २वेदना-नयविभाषणता
दीर्घता और अपर्याप्त कालकी १ उपर्युक्त नामवेदना आदिमेंसे
हूस्वताका उल्लेख किस किस वेदनाको कौन
तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे कौनसे नय विषय करते हैं,
आयुके बांधनेका विधान ३८ इसका विवेचन
अधस्तन स्थितियोंके निषेक , ३ वेदनानामविधान
का जघन्य पद और उपरि१ नैगमादि नयोंकी अपेक्षा
तन स्थितियों के निषकका वेदनाके भेद व उनका स्वरूप
उत्कृष्ट पद करनेका विधान ४ वेदनाद्रव्यविधान
बहुत बहुत वार उत्कृष्ट १ वेदना द्रव्यविधानके अन्तर्गत
योगस्थानों की प्राप्तिका निर्देश ४५ पदमीमांसा आदि३ अनुयोग
बहुत बहुत वार बहुत द्वारोंका निर्देश
संक्लेश रूप परिणामोसे परि२ इन ३ अनुयोगद्वारोंके अति
णत होनेका विधान रिक्त संख्या व गुणकार
एकेन्द्रियोंमें त्रसस्थितिसे आदि अन्य ५ अनुयोगद्वारोंकी
रहित कर्मस्थिति तक परिसम्भावनाविषयक शंका व
भ्रमण करने के पश्चात् बादर उसका परिहार
त्रस पर्याप्त जीवों में उत्पन्न पदमीमांसा २०-३० होनेका उल्लेख ३ पदमीमांसामें द्रव्य की अपेक्षा
असोमें परिभ्रमण कराते हुए झानावरणीयवेदनाविषयक
छह आवासोंकी प्ररूपणा उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट आदि पदोंकी
इस प्रकार परिभ्रमण करते प्ररूपणा
हुए उसके अन्तिम भवमें शेष सात कमौसे सम्बद्ध
सातवीं प्रथिवीमें उत्पन्न होनेका उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट आदि पदोकी
उल्लेख प्ररूपणा
वहांपर उत्कृष्ट योगके द्वारा स्वामित्व , ३०-३८४ आहारग्रहणादिका नियम
५४ ५ स्वामित्वके उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट
१७ योगयवमध्यप्ररूपणामें प्ररूपदविषयक २ भेदोंका निर्देश ३० । पणा-प्रमाणादि ६ अनुयोगद्वार ६१
२० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.