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________________ ११२] छक्खंडागमे बेयणाखंड [ ४, २, ४, १२. विदियसमयसंचिददव्वं पि अत्थि । तदियसमयसंचिददव्वं पि अस्थि । एवं णेदव्वं जाव कम्मट्टिदिचरिमसमओ त्ति । एवं परूवणा गदा । कम्मद्विदिआदिसमयपबद्धस्स हेरइयचरिमसमए अणता परमाणवो। एवं सव्वत्थ वत्तव्वं । पमाणपरूवणा गदा । कम्मट्ठिदिआदिसमयसंचओ थोवो । चरिमसमयसंचओ असंखेज्जगुणो । को गुणमारो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं पुरदो भणिस्सामो । अपढम-अचरिमसमयसंचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? किंचूणदिवड्डगुणहाणीओ । एत्थ वि कारणं पुरदो भणिस्सामो । अचरिमसमयसंचओ विसेसाहिओ । अपढमसमयसंचओ विसेसाहिओ। कम्महिदिसंचओ विसेसाहिओ । कम्मढिदिसव्वदव्वसंदिट्ठी एसा३३८८ १६४४ ७७२ ३३६ ११८ १८०४ ३७६ । १३८ ४०५० १९८० ९४० ४२० १६० ४४४४ २१७२ १०३६ ४६८ ४८६० २३८० ११४० ५२० २१० ५३०८ २६०४ १२५२ ५७६ | २३८ ५७८८ २८४४ १३७२ ६३६ ६३०० ३१०० | १५०० । ८५२ १८४ | ३०० एवं संचयाणुगमो समत्तो । संचित द्रव्य भी है। तृतीय समयमें संचित द्रव्य भी है । इस प्रकार कर्मस्थितिके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये । इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई। ___ जो समयप्रबद्ध कर्मस्थितिके प्रथम समयमें बंधता है उसके नारक भयके अन्तिम समयमें अनन्त परमाणु हैं। इसी प्रकार सर्वत्र कहना चाहिये। प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। कर्मस्थितिके प्रथम समयका संचय स्तोक है। उससे अन्तिम समयका संचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार अंगुलका असंख्यातवां भाग है। इसका कारण आगे कहेंगे। अप्रथम-अचरम समयका संचय उससे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? गुणकार कुछ कम डेढ़ गुणहानियां है। इसका भी कारण आगे कहेंगे। अचरम समय सम्बन्धी संचय उससे विशेष अधिक है। अप्रथम समय सम्बन्धी संचय उससे विशेष अधिक है। कर्मस्थिति सम्बन्धी संचय उससे विशेष अधिक है। कर्मस्थितिके सब द्रव्यकी संरष्टि ग्रह है (मूलमें देखिये)। इस प्रकार संचयानुगम समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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