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________________ ४२ षट्खंडागमकी प्रस्तावना उद्धार षट्खंडागम और कषायप्राभृतमें पाया जाता है। किन्तु शेष भागोंके प्रकरणों व विषय आदिका संक्षिप्त परिचय दोनों सम्प्रदायोंके साहित्यमें विखरा हुआ पाया जाता है। अतः लुप्त हुए श्रुतांगके इस परिचयको हम दोनों सम्प्रदायोंके प्राचीन प्रमाणभूत ग्रंथोंके आधारपर यहां तुलनात्मकरूपमें प्रस्तुत करते हैं, जिससे पाठक इस महत्त्वपूर्ण विषयमें रुचि दिखला सकें और दोनों सम्प्रदायोंकी मान्यताओंमें समानता और विषमता तथा दोनोंकी परस्पर परिपूरकताकी ओर ध्यान दे सकें। इस परिचयका मूलाधार श्वेताम्बर सम्प्रदायके नन्दीसूत्र और समवायांगसूत्र हैं तथा दिगम्बर सम्प्रदायके धवल और जयधवल ग्रंथ । धवलामें दृष्टिवादका स्वरूप इसप्रकार बतलाया है तस्य दृष्टिवादस्य स्वरूपं निरूप्यते । कौत्कल-काणेविद्धि-कौशिक-हरिश्मश्रु-मादपिक-रोमश-हारीतमुण्ड-अश्वलायनादीनां क्रियावाददृष्टीनामशीतिशतम् , मरीचि-कपिलोलू क-गार्य-व्याघ्रभूति-वाद्वालि-माटरमौद्गलायनादीनामक्रियावाददृष्टीनां चतुरशीतिः, शाकल्य-वल्कल-कुथुमि-सात्यमुनि-नारायण-कण्व-माध्यंदिनमोद-पैप्पलाद-बादरायण-स्वेष्टकृदैतिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानिकदृष्टीनां सप्तपष्टिः, वशिष्ठ-पाराशर-जतुकर्ण-वाल्मीकि-रोमहर्षणी-सत्यदत्त-व्यासैलापुत्रौपमन्यवैन्द्रदत्तायस्थूणादीनां वैनयिकदृष्टीनां द्वात्रिंशत् । एषां दृष्टिशतानां त्रयाणां त्रिषष्टयुत्तराणां प्ररूपणं निग्रहश्च दृष्टिवादे क्रियते। (सं. प., पृ० १०७) इसका अभिप्राय यह है कि दृष्टिवाद अंगमें १८० क्रियावाद, ८४ अक्रियावाद, ६७ अज्ञानिकवाद और ३२ वैनयिकवाद, इसप्रकार कुल ३६३ दृष्टियोंका प्ररूपण और उनका निग्रह अर्थात् खंडन किया गया है । इन वादों और दृष्टियोंके कर्ताओंके जो नाम दिये गये हैं, उनमेसे अनेक नाम वैदिक धर्मके भिन्न भिन्न साहित्यांगोंसे सम्बद्ध पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ, हारीत, वशिष्ठ, पाराशर सुप्रसिद्ध स्मृतिकारोंके नाम हैं। व्यासकृत स्मृति भी प्रसिद्ध है और वे महाभारत के कर्ता कहे जाते हैं। वाल्मीकि कृत रामायण सुविख्यात है, पर धर्मशास्त्रसंबंधी उनका बनाया ग्रंथ नहीं पाया जाता । आश्वलायन श्रौतसूत्र भी प्रसिद्ध है। गर्गका नाम एक ज्योतिषसंहितासे सम्बद्ध है । कण्व ऋषिका नाम भी वैदिकसाहित्यसे सम्बंध रखता है। माध्यंदिन एक वैदिक शाखाका नाम है। बादरायण वेदान्तशास्त्रके और जैमिनि पूर्वमीमांसाके सुप्रसिद्ध संस्थापक हैं। किन्तु शेष अधिकांश नाम बहुत कुछ अपरिचितसे हैं। इन नामोंके साथ उन उन दृष्टियोंका संबंध किन्हीं ग्रंथोंपरसे चला है या उनकी चलाई कोई अलिखित विचारपरम्पराओंपरसे कहा गया है यह जानना कठिन है । पर तात्पर्य यह स्पष्ट है कि दृष्टिवादमें अनेक दार्शनिक मत-मतान्तरोंका परिचय और विवेक कराया गया था। दृष्टिवादके जो भेद आगे बतलाये गये हैं उनमें सूत्र और पूर्वोके भीतर ही इन वादोंके परिशीलनकी गुंजाइश दिखाई देती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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