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________________ [८५१ १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे आहार-आलाववण्णणं जीवसमासा अदीदीवसमासा वि अत्थि, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ अदीदपज्जत्ती वि अस्थि, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण पंच पाण चत्तारि पाण तिण्णि पाण दो पाण एग पाण अदीदपाण वि अत्थि, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अस्थि, चत्तारि गदीओ सिद्धगई वि अस्थि, पंच जादीओ अदीदजादी वि अस्थि, छ काय अकाओ वि अत्थि, कम्मइयकायजोगो अजोगो वि अत्थि, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, छ णाणाणि, दो संजम व संजमो णेव असंजमो णेव संजमासंजमो वि अत्थि, चत्तारि दंसण, दव्व-भावेहिं छ लेस्साओ अलेस्सा वि अत्थि, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया णेव भवसिद्धिया व अभवसिद्धिया वि अस्थि, पंच सम्मत्तं, सणिणो असण्णिणो णेव सणिणो णेव असण्णिणो वि अस्थि, अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा सागार-अणागारेहिं जुगवदुवजुत्ता वा। समास तथा अतीतजीवसमासस्थान भी है, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां तथा अतीतपर्याप्तिस्थान भी है, सात प्राण, सात प्राण, छह प्राण, पांच प्राण, चार प्राण, तीन प्राण, दो प्राण, एक प्राण तथा अतीतप्राणस्थान भी है। चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंशास्थान भी है, चारों गतियां तथा सिद्धगति भी है, पांचों जातियां तथा अतीतजातिस्थान भी है, छहों काय तथा अकायस्थान भी है, कार्मणकाययोग तथा अयोगस्थान भी है, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, विभंगावधि तथा मनःपर्ययज्ञानके विना शेष छह ज्ञान, असंयम और यथाख्यातसंयम ये दो संयम तथा संयम, असंयम और संयमासंयम इन तीनों से रहित भी स्थान है, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं तथा अलेश्यास्थान भी है, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक तथा भव्यासिद्धिक और अभव्यसिद्धिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है, सम्यग्मिथ्यात्वके विना पांच सम्यक्त्व, संक्षिक, असंशिक तथा संज्ञिक और असंशिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है. अनाहारका साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी तथा साकार और अनाकार इन दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त भी होते हैं। नं. ५३९ | गु. जी. प. प्रा. सं. ५ मि.८ अप. ६५.७ ४ सा.७ ६अ. ७.. अवि. अयो. ५, ६ सयो. प. १४, ५ अयो. अती. अती. ४ ३ अ.गु.जीव. प. |२१ अती. जा. F4 सिद्धग. 1 क्षीणसं, अकाय. अयोग. अनाहारक जीवोंके सामान्य आलाप. का. यो. वे. क. झा. | संय. द. ले. म. स. सील. आ. १२ विभं. असं. भा.६ म. सम्य. .सं. अना. साका. मनः. यथाः अले. अ. विना. असं. अना. विना. अनु. तथा. यु.उ. eble अकषा. अनु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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