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छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, १. तेउलेस्सा-असंजदसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पजचीओ छ अपजत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, णिरयगईए विणा तिण्णि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तेरह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजमो, तिण्णि देसण, दव्येण छ लेस्साओ, भावेण तेउलेस्सा; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मतं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुखजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा।
तेसिं चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दस जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजमो, तिण्णि दंसण, दवेण छ लेस्साओ, भावेण तेउलेस्सा; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारु
तेजोलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, संज्ञी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, आहारककाययोगद्विकके विना शेष तेरह योग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन शान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेजोलेश्या; भव्यसिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं तेजोलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, वशी प्राण, चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; तीनों घेद, चारों कषाय, आदिके तीन शान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेजोलेश्याः भव्यसिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संक्षिक,
नं. ४३२ तेजोलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप. |गु. जी. प. प्रा. सं. ग.ई. का. यो.. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. संज्ञि. आ. उ. ।
FEE
अ.सं प. ६अ.
पंचे. ~ त्रस. -
आ. द्वि. विना.
मति अस. के.द. भा. १ म. औप. सं. आहा, साका, श्रुत. वना. ते. क्षा. अना. अना.
अव..
क्षायो.
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