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७६८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगईए विणा तिण्णि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तिण्णि जोग, इत्थिवेदेण विणा दो वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, असंजमो, तिणि दंसण, दव्येण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण काउलेस्सा; भवसिद्धिया, उवसमसम्मत्तेण विणा दो सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
तेउलेस्साणं भण्णमाणे अत्थि सत्त गुणट्ठाणाणि, दो जीवसमासा, छ पजत्तीओ छ अपजत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, णिरयगदीए विणा तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, पण्णारह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, सत्त णाण, पंच संजम, तिण्णि दंसण, दवेण छ लेस्सा, भावेण तेउलेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया,
उन्हीं कापोतलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संज्ञी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, औदारिकमिश्र, बैक्रियिकमिश्र, और कार्मणकाययोग ये तीन योग; स्त्रीवेदके विना शेष दो वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कापोतलेश्या; भव्यसिद्धिक, औपशमिकसम्यक्त्वके विना क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
तेजोलेश्यावाले जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-आदिके सात गुणस्थान, संशीपर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, पन्द्रहों योग, तीनों वेद, चारों कषाय, केवलज्ञानके विना शेष सात ज्ञान, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यातसंयमके विना शेष पांच संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेजोलेश्याः भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छहों सम्यक्त्व, संशिक,
नं. ४२१ कापोतलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. | जी. प. प्रा.सं. ग. इं.कायो. |वे. क. हा. संय. । द. | ले. भ. | स. सनि. आ. | उ. ।
अवि.सं. अ.
न.पं.त्र.
औ.मि.
م في .
वै.मि. नं.
मति. असं. के.द. का. म. क्षा. सं. आहा. साका.
विना. शु. क्षायो. अना. अना. अव.
का.
भुत..
कार्म.
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