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७६६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
काउलेस्सा-सम्मामिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एगं गुणहाणं, एगो जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगदीए विणा तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दस जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाणाणि तीहिं अण्णाणेहिं मिस्साणि, असंजमो, दो दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण काउलेस्सा; मवसिद्धिया, सम्मामिच्छत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा"।
काउलेस्सा-असंजदसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगईए विणा तिण्णि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तेरह जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि
आहारक, अनाहारका साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
कापोतलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप कहने पर-एक सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञानोंसे मिश्रित आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे कापोतलेश्या; भव्यसिद्धिक, सम्याग्मिथ्यात्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
कापोतलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति,त्रसकाय, आहारककाययोगद्विकके विना शेष तेरह योग; तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके
नं.४१८ कापोतलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप. गु. जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो. | वे. क. ज्ञा. [ संय. द. । ले. भ. स. संज्ञि. आ. । उ.
सम्य. सं.प.
न.पंचे.त्रस.म.४
सभ्य. -
.सं. आहा. साका.
अना.
अज्ञा. असं. चक्षु. भा. १
अच. का. ज्ञान. मिश्र.
व. ४
A
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