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१, १.] संत-परूवणाणुयोगदारे लेस्सा-आलाववण्णणं
[७५७ ___ किण्हलेस्सा-सम्मामिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगईए विणा तिणि गईमो, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दस जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाणाणि तीहि अण्णाणेहिं मिस्ताणि, असंजमो, दो दंसण, दव्येण छ लेस्साओ, भावेण किण्हलेस्सा; भवसिद्धिया, सम्मामिच्छत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारवजुत्ता वा ।
किण्हलेस्सा-असंजदसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पञ्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगदीए विणा तिणि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, वेउब्धियमिस्सेण विणा बारह जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजमो, तिणि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण
कृष्णलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप कहने पर एक सम्यग्मिथ्यारधि गुणस्थान, एक संज्ञी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञानोंसे मिश्रित आदिके तीन शाम, असंयम, दो दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे कृष्णलेश्याः भव्यसिद्धिक, सम्यग्मिथ्यात्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और मनाकारोपयोगी होते हैं।
कृष्णलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीयोंके सामान्य आलाप कहनेपर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, देवगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और आहारककाययोगद्विकके विना शेष बारह योग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन वर्शन,
नं. ४०५ । गु.| जी. प.
कृष्णलेश्यावाले सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप. प्रा. सं.ग.। ई ।का.। यो... वे. क. ज्ञा. संय. द. | ले. म. स. संलि | आ.
उ. ।
सम्य. -
स.प.
अज्ञा. असं. चक्षु. भा. भ. सम्य. सं. आहा.साका. अच. कृष्ण.
अना. ज्ञान.
मिश्र.
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