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________________ ७१८] छक्खंडागमे जौबट्ठाणं [१, १. ओहिदसणीणं भण्णमाणे अत्थि णव गुणट्ठाणाणि, दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, पण्णारह जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, चत्तारि णाण, सत्त संजम, ओहिदसण, दव्यभावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।। तेसिं चेव पज्जताणं भण्णमाणे अत्थि णव गुणट्ठाणाणि, एगो जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, चत्तारि णाण, सत्त संजम, ओहिदंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अवधिदर्शनी जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तकके नौ गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, प्रसकाय, पन्द्रहों योग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आदिके चार शान, सातों संयम, अवधिदर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संक्षिक, माहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी, और अनाकारोपयोगी होते हैं। . उन्हीं अवधिदर्शनी जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषाय तकके नौ गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंशास्थान भी है, चारों गतियां, पंचेन्द्रिय जाति, बसकाय, पर्याप्तकालसंबन्धी ग्यारह योग; तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आदिके चार ज्ञान, सातों संयम, अवधिदर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यासिद्धिक, औपशमिक आदि तीन सम्यक्त्व, संशिक, नं. ३९३ अवधिदर्शनी जीवोंके सामान्य आलाप. प. प्रा. सं. ग. ई.का. यो. वे. क. शा. संय. द. ले. (म. स. संक्षि.। आ. उ.। २६प. ०५ ३४ ६अ. ७ मतिः अब.मा.६ भ. औप. सं. आहा. साका. क्षा अना. अना. अव. क्षायो. मनः . क्षीणसं. the अकषा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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