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________________ ७३.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. अत्थि, केवलदसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण सुक्कलेस्सा अलेस्सा वि अस्थि, भवसिद्धिया णेव भवसिद्धिया णेव अभवसिद्धिया वि अत्थि, खइयसम्मत्तं, णेव सणिणो णेव असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागार-अणागारेहिं जुगवदुवजुत्ता वा। सजोगि-अजोगि-सिद्धाणमालावा मूलोघो व्व वत्तव्वा । एवं णाणमग्गणा समत्ता । संजमाणुवादेण संजदाणं भण्णमाणे अत्थि णव गुणवाणाणि, दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस सत्त चत्तारि दो एक पाण, चत्वारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तेरह जोग अजोगो वि विहारशुद्धिसंयम तथा संयम, असंयम और संयमासंयम इन तीनोंसे रहित भी स्थान है, केवलदर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या तथा अलेश्यास्थान भी है; भव्यसिद्धिक तथा भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है, क्षायिकसम्यक्त्व, संशिक और असंक्षिकसे रहित स्थान, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोग और अनाकारोपयोगसे युगपत् उपयुक्त भी होते हैं। केवलज्ञानकी अपेक्षा भी पयोगिकेवली अयोगिकेवली और सिद्ध जीवोंके आलाप मूल ओघालापके समान कहना चाहिए। इसप्रकार ज्ञानमार्गणा समाप्त हुई। संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंके आलाप कहने पर-प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थानतक नौ गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चार प्राण, दो प्राण, एक प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, प्रसकाय, वैक्रियिककाययोग और वैक्रियिकमिश्रकाययोग इन दो योगोंके विना शेष तेरह योग तथा अयोग नं. ३७१ । गु. जी. केवलज्ञानी जीवोंके आलाप. सं.ग. इं.का. । का. यो. । वे. क. झा. | संय. द. ले. भ. स. प. | प्रा. . २ । २ म.२ . . क्षीणसं. . अती. AM अतीतगु. अतीतप. अतिजी. अका. : अतीतप्रा. . सिद्धग. अपग. . अकषा. . केव. यथा. के. भा. १ भ. क्षा.. शुक्ल. अनुभय. अनु. अले. . उ. कार्म.१ अयो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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