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७२०) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. दस जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो देसण, दव्य-मावेहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
...तेसिं चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, णिरयगदीए विणा तिणि गदीओ, पंचिं. दियजादी, तसकाओ, तिण्णि जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा।
विभंगणाणाणं भण्णमाणे अत्थि दो गुणट्ठाणाणि, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ,
औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; तीनों वेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं मति-श्रुत-अज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक सासादन गुणस्थान, एक संशी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, अलकाय, औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये तीन योग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके दो अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
विभंगज्ञानी जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-आदिके दो गुणस्थान, एक संक्षीपर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति,
नं. ३६० मति श्रुत-अज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. शु. जी. प. प्रा. सं ग.ई. का. यो. वे. क. शा. संय. द. ले. म. स. । संलि. आ. उ. |
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