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________________ ७०४ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. तेसिं चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, सत्त जीवसमासा, छ अपज्जत्तीओ पंच अपजत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण पंच पाण चत्तारि पाण तिण्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, एइंदियजादिआदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छक्काय, तिण्णि जोग, तिण्णि वेद, कोधकसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सणिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा। कोधकसाय-सासणसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पजत्तीओ छ अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गईओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तेरह जोग, तिणि वेद, कोधकसाओ, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, उन्हीं क्रोधकषायी मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, सात अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां पांच अपर्याप्तियां चार अपर्याप्तियां; सात प्राण, सात प्राण, छह प्राण, पांच प्राण, चार प्राण, तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गातयां, एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छहों काय, औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और काणकाययोग ये तीन योग, तीनों वेद, क्रोधकषाय, आदिके दो अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, संशिक, असंक्षिक; आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। __ क्रोधकषायी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक सासादन गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और संशी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगके विना शेष तेरह योग; तीनों वेद, क्रोधकषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, नं. ३३७ क्रोधकषायी मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. गु. । जी. प. प्रा. सं. ग.ई. का. यो. वे. क. | झा. संय. द. | ले. भ. | स. , संलि. आ. | उ. । मि. अप. ५.. 566 औ.मि. वै.मि. कार्म. को. कुम. असं. चक्षु. का. भ. मि. सं. आहा. साका. | कुश्रु. अच. शु. अ. असं. अना. अना. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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