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________________ २८४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,१. पुरिसवेदाणं भण्णमाणे अत्थि णव गुणट्ठाणाणि, चत्तारि जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिणि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, पण्णारह जोग, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, सत्त णाण, पंच संजम, तिणि दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा"। तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि णव गुणट्ठाणाणि, दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ, दस पाण णव पाण, चत्तारि सण्णा, तिणि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, सत्त णाण, पंच संजम, तिण्णि दसण, दर-मावेहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, . पुरुषवेदी जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-आदिके नौ गुणस्थान, संशी-पर्याप्त, संक्षी-अपर्याप्त, असंशी-पर्याप्त और असंही-अपर्याप्त ये चार जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण, नौ प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, पन्द्रहों योग, पुरुषवेद, चारों कषाय, केवलज्ञानके विना शेष सात ज्ञान, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यातसंयमके विना शेष पांच संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भाषसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संक्षिक, असंक्षिक; आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी, और अनाकारोपयोगी होते हैं। __ उन्हीं पुरुषवेदी जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-आदिके नौ गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और संशी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां दशों प्राण, नौ प्राण; चारों संशाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, प्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग, वैक्रियिककाययोग और आहारककाययोग ये ग्यारह योग पुरुषवेद, चारों कषाय, केवलज्ञानके विना शेष सात शान, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यातसंयमके विना शेष पांच संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य नं. ३११ पुरुषवेदी जीवोंके सामान्य आलाप. । गु. नी. प. प्रा.सं. | ग. इ.का.। यो. वे. क. झा. संय. द. | ले. म. स. संलि., आ.। उ. | ११/१५/१/४/७५ असं. ३ द्र.६ २६२ २२ स. प. अ. ति. पु. केत्र. देश. के.द. भा. ६ म. सं. आहा. साका. सं. अ. ५५. ९ विना. सामा. विना. अ. असं. अना. अना. असं.प.५अ.७ छेदो. असं.अ.. परि. । F१०, NAM पंचे. त्रस. आदिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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