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६७८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दस जोग, इत्थिवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तिण्णि जोग, इत्थिवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्साओ, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्साओ; भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सण्णिणो,
उन्हीं स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संक्षी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां, पंचेन्द्रियजाति, बसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग; औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग; स्त्रीवेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संशी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, नरकगतिके विना शेष तीन गतियां पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदा मिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये तीन योग; स्त्रीवेद, चारों कषाय, आदिके दो अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संशिक, आहारक,
१ प्रतिषु ' तेउ' इत्यधिकः पाठः समास्ति ।
नं.३०२
स्त्रीवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्त आलाप. गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. झा. । संय. द. ले. भ. स. संनि. आ. उ. | ६ १०४ |३१११०१ ४ ३ १ २ द्र.६११११२
...म.४ स्त्री. अज्ञा. असं. चक्षु. भा. ६ म. सासा. सं. आहा. साका. व.४ अच.
अना.
पंचे. - त्रस. -
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