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________________ १, १.] संत - परूवणाणुयोगद्दारे जोग - आळाववण्णणं [ ६४९ अकसाओ, केवलणाण, जहाक्खादविहारसुद्धिसंजमो, केवलदंसण, दव्वेण छ लेस्सा, भावेण सुक्कलेस्सा; भवसिद्धिया, खइयसम्मत्तं णेत्र सणिगो णेव असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागार - अणागारेहि जुगवदुवजुत्ता वा होंति । ओरालिय कायजोगीणं भण्णमाणे अत्थि तेरह गुणट्टाणाणि, सत्त जीवसमासा, छ पज्जतीओ पंच पज्जतीओ चत्तारि पज्जत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ: पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अस्थि, दो गदीओ, एइंदियजादि -आदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छ काय, ओरालियकायजोगो, तिणि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, अट्ठ णाण, सत्त संजम, चचारि दंसण, दव्त्र-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असण्णिणो णेव सण्णिणो णेव असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता योग और कार्मणका योग ये तीन योग; अपगतवेदस्थान, अकषायस्थान, केवलज्ञान, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम, केवलदर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या; भव्यसिद्धिक, क्षायिकसम्यक्त्व, संशी और असंझी इन दोनों विकल्पोंसे रहित, आहारक, अनाहारक, साकार और अनाकार इन दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त होते हैं। औदारिककाययोगी जीवोंके आलाप कहने पर -- आदिके तेरह गुणस्थान, पर्याप्तक जीवों के सात पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां, चार पर्याप्तियां: दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, छह प्राण, चार प्राण और चार प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, तिर्यंचगति और मनुष्यगति ये दो गतियां, एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छद्दों काय, औदारिककाययोग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आठों ज्ञान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहीं लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिकः छहों सम्यक्त्व, संशिक, असंज्ञिक तथा संशी और असंज्ञी इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है; नं. २६८ गु. जी, | प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. | ज्ञा. १ १ सयो. ܛܦ ܝ ܚ प. प.अ. Jain Education International क्षाणस. ० . ६ ४ ० २ 16 काययोगी केवली जिनके आलाप. पच. ०. ३ औ. २ ० संय. द. ले. १ ० १ १ द्र. ६ के. यथा, के. द. मा. १ शुक्ल. For Private & Personal Use Only भ. सं. संज्ञि. आ. उ. ० १ २ १ २ भक्षा. अनु. आहा. साका. अना. अना. यु. उ. www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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